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आभार ]
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'कल्पसूत्र'नी विविध टीकाओमां जुदां जुदां राज्यो भने देशोनां नामोनी एक सूचि छे तेमां 'आभोर' पण छे. '
[२] वर्तमानकाळमां 'आभीर' प्रदेशनाम तरीके रह्यो नथी, 'आहीर' जातिमां टकी रह्यो छे. जुदा जुदा वर्णों माटे खीजमां वपराता शब्दोनो निर्देश करतां 'सूत्रकृतांग सूत्र' उपरनी शीलांकदेवनी वृत्तिमां कहां छे के— ब्राह्मणने 'डोह, ' वणिकने 'किराट' तथा शूद्रने 'आभीर' कहेवामां आवे छे. "
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आभीर जातिमां प्रचलित दियखटाना रिवाजनुं सूचन पण एक कथानकमां करवामां आव्युं छे सुरग्राममां यशोधरा नामे कोई आभीरी हती, तेनो योगराज नामे पति अने वत्सराज नामे दियर हता. दियरनी पत्नीनुं नाम योधनी हतुं. एक वार दैवयोगे योधनी अने योगराज समकाळे मरण पाम्यां एटले यशोधराए पोताना दियर वत्सराज पासे याचना करी के 'हुं तमारी पत्नी थाउं.' पोतानी पत्नी मरण पामी हती ए विचारीने वत्सराजे पण एनो स्वीकार कर्यो. - कुलाचारनी वात करतां आभीगेनी मंथनिकाशुद्धिनो खास निर्देश करवामां आव्यो छे, ए वस्तु एमनी गोपालनप्रधान जीवनप्रथानी धोतक छे..
कच्छमां जैन धर्म पाळता आभीरो हता एम एक स्थळे कयुं छे. आनंदपुरनो एक दरिद्र चतुर्वेदी ब्राह्मण कच्छमां गयो हलो अने त्यांना आभीए एने प्रतिबोध पमाड्यो हतो. "
१ आभीरदेशेऽचलपुरासन्ने कन्नान्नानयोर्मध्ये ब्रह्मद्वीपे पञ्चशती तापसानामभूत्, कसु, पृ. ५१३; सहेज जुदा शब्दोमां आज उल्लेख माटे जुओ ककि, पृ. १७१ तथा कदी, पृ. १४९.
२ जुओ वेणातट.
३ जुओ तगरा.
४. जुओ पुगु मां आभीर.
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