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________________ मलयगिरि आचार्य ] [ १२९ मलयगिरिए पोतानी ' आवश्यक वृत्ति'मा पूर्वकालीन, वृत्तिओनो बहु, वचनमा निर्देश को छे, ए सूचक छे. हरिभद्र उपरांत बोजा एक आचार्य जिनभटनी टोका ज जो तेमने उद्दिष्ट होत तो निर्देश द्विवचनमा होत. पण बहुवचननो प्रयोग बतावे छे के ए सिवाय पण बीजी एक अथवा वधारे टीकाओ 'आवश्यकसूत्र' उपर होवी जोईए. 'विवृतयः' एवो स्पष्ट उल्लेख होबाथी उपयुक्त बे विवरणोमां चूर्णिनो समावेश करीने बहुवचनना प्रयोगनुं समाधान करवु ए दूराकृष्ट लागे छे. .. ज्योतिष्करंडक, १० : पिंडनियुक्ति, ११ अने 'जीवाभिगम'नी'२ वृत्तिओमां मलयगिरिए वारंवार ते ते ग्रन्थो उपरनी 'मूल टीका'नो उल्लेख को छे. आ त्रणे सूत्रग्रन्थो , उपर मलयगिरि पूर्वेनी कोई टीका आजे विद्यमान नथी. जीवाभिगम'नी 'मूल टीका'ना उल्लेखो 'राजप्रश्नीय'नी वृत्तिमां पण छे.” 'प्रज्ञापना' तथा 'नंदिसून उपरनी हरिभद्रसूरिनी टीकाओनो उल्लेख तेमणे कयों छे." वळी पोतानी रचनाओमा मलयगिरिए पोतानी ज अन्यान्य वृत्तिओना उल्लेख कर्या छे, जे तेमनी कृतिओनी आनुपूर्वी नक्की करवामां सहायभूत थाय छे. 'नंदिसूत्र' अने 'पिंडनियुक्ति'नी वृत्तिओमां पोतानी 'धर्मसंग्रहणि टीका'नो उल्लेख" तेमणे कर्यो छे. ए ज रीते 'ज्योतिष्करंडक'नी वृत्तिमा क्षेत्रसमास'नौ टीकानो उल्लेख कर्यो छे." 'बृहत्कल्प सूत्र'नी पीठिकावृत्तिमां 'संस्कृत' शब्दनो अर्थ समजावतां तेमणे पोताना व्याकरण नो निर्देश कयों छे." ए ज प्रमाणे 'सूर्यप्रज्ञप्ति' नी वृत्तिमां पग तेमणे स्वरचित 'शब्दानुशासन'नो उल्लेख कों छे.८ 'तत्त्वार्थपूत्र' उपरनी स्वरचित टीकानो उल्लेख एमणे 'प्रज्ञापना सूत्र' तथा 'ज्योतिष्करंडक'नी वृत्तिओमां को छे." .. 'जीवाभिगमसूत्र' उपरनी पोतानी वृत्तिमा 'देशीनाममाला' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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