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________________ १२८ ] [ मलयगिरि आचार्य छता परिचयप्रदर्शक मोघम निर्देश कर्यो छे ए उपरथी पण तेओ हेमचन्द्रना लघुवयस्क समकालीन होबार्नु अनुमान थाय छे. ___ मलयगिरिए नीचेना आगमग्रन्थो उपर टीकाओ लखी छे : 'आवश्यक,' 'ओघनियुक्ति,' 'जीवाभिगम,' 'ज्योतिष्करंडक,' 'नंदिसूत्र,' ' पिंडनियुक्ति,' 'प्रज्ञापना,' 'भगवती' द्वितीय शतक, 'राजप्रश्नीय,' 'व्यवहार सूत्र, ' ' सूर्यप्रज्ञप्ति,' अने 'विशेषावश्यक.' 'बहत्कल्पसूत्र'नी पीठिका उपर मलयगिरिनी वृत्ति छ, पण त्यार पछीनी वृत्ति आचार्य क्षेमकातिए पूरी करी छे, ए उपरथी अनुमान थाय छे के 'बहत्कल्पसूत्र'नी वृत्ति लखतां लखतां ज मल यगिरिनु अवसान थयु हशे. 'जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति 'नी मलयगिरिनी वृत्ति नाश पामी होवानुं विधान सत्तरमा सैकामां थयेला टीकाकारो पुण्यसागर अने शान्तिचन्द्रे कयु छे," पण ए वृत्तिनी प्रत जेसलमेरना भंडारमाथी जाणवामां आवी छे.' आ टीकाकारोने एनी प्रतो अलभ्य होवी जोईए. वळी ' तत्त्वार्थ सूत्र' उपर पण मलयगिरिए एक टोका रची हती, जे आजे उपलब्ध नथी (जुओ टि. १९). आगमग्रन्थोनी टोकाओ उपरांत मलयगिरिए केटलाक आगमेतर धर्मग्रन्थो उपर टीकाओ रची छे, अने जेमांथी एमनो समय नक्की करवामां उपयोगी थाय एवो उल्लेख प्राप्त थाय छे ते, उपर्युक्त ' मुष्टिव्याकरण' नामे ' शब्दानुशासन' पण लख्यु छे. मलयगिरिनी टीकाओमा उच्च कोटिनी विद्वत्ता साथे सरलतानो सुभग समन्वय थयो छे अने परिणाम विद्वानो तेम ज विद्यार्थीओने ते एकसरखी उपयोगी वनी छे. एमां एमणे प्रसंगोपात्त पोताना पूर्वकालना वृत्तिकारोनो उल्लेख को होवाने कारणे आगमसाहित्यना इतिहास माटे ए केटलोक अगत्यनी सामग्री पूरी पाडे छे. जेम के( आवश्यक सूत्र' उपर हरिभद्रसूरिनी वृत्ति होवानुं प्रसिद्ध छे, पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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