________________
मलयगिरि आचार्य ]
[ १२७ कन्यानां चेष मस्तकप्रदेशेन प्रक्षिप्यते, अत एवायमूर्ध्वः- सरकञ्चुक इति व्यपदिश्यते, तथा च तप्रादिव्याख्यानं कुर्वन्नाह भाष्यकृत्-" x x जवना लउ त्ति भणिओ उब्भो सरकंचुओ कुमारीए xx" इति। आम, पृ. ६८
. . मरुतैलं-मरुदेशे पर्वतादुत्पद्यते । बृकक्षे. भाग ५. पृ. १५९१. बृकभा, गा, ६०३१ मां 'मरुतेल्ल'नो उल्लेख छे. जेनी टीकारूपे उपर्युक्त संस्कृत अवतरण छे, ए सूचवे छ के ' मरुतैल' विशेनो उल्लेख मुकाबले घणो प्राचीन छे.
. ८ 'कुलिक ' लघुतरं काष्ठं तृणादिच्छेदार्थ यत् क्षेत्रे वाह्यते तत् मरुमण्डलादिप्रसिद्धं कुलिकमुच्यते, ततश्च यदा हलकुलिकादिभिः क्षेत्राण्युप. क्रम्यन्ते... , अनुहे, पृ. ४४ मलयांगरि आचार्य . आगमसाहित्यना सौथी मोटा संस्कृत टीकाकारोमा आचार्य मलयगिरिनु स्थान छे. एमणे पोतानी अनेक कृतिओ पैकी एकेयमां रचनासंवत आप्यो नथी तेम ज पोताने विशे कशी माहिती आपी नथी. पोते रचेलं 'शब्दानुशासन' जे 'मुष्टिव्याकरण' (मूठीमां माय एवं संक्षिप्त व्याकरण ) पण कहेवाय छे एमां तेमणे 'अरुणत् कुमारपालोऽरातीन् ' एवं उदाहरण आप्युं छे,' अने एमां क्रियापद अद्यतन भृतमा होई कर्ता थोडाक समय उपर बनेला बनावनी वात करे छे एवं अनुमान स्वाभाविक रीते थई शके. आचार्य मलयगिरि गुजरातमां थई गया छे ए तो निश्चित छे, पण उपर्युक्त प्रमाणने आधारे तेओ ई.स.ना बारमा सैकामां थयेला राजा कुमारपाल (ई. स. ११४३११७३ ) ना समकालीन हता के एनी पछी थोडाक समये थया हता एवं अनुमान थई शके. वळी मलयगिरिए आवश्यक सूत्र ' उपरनी पोतानी वृत्तिमा · आह च स्तुतिषु गुरवः ' एवी नोंध साथे आचार्य हेमचन्द्रकृत 'अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका 'मांथी · अन्योन्यपक्षप्रतिपक्षभावात् ' ( श्लो. ३०) ए श्लोक उद्धृत कयों छे, त्यां हेमचन्द्र माटे एमनुं नाम लीधा सिवाय ' गुरवः' एवो बहुमानसूचक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org