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सम्प्रति दक्षिणापथ, सुराष्ट्र तथा आंध्र, द्राविड आदि देशो ताबे कर्या हता. ___ जैन कथा अनुसार, संप्रति पूर्वजन्ममां कौशांबीमा 'भिखारी हतो अने मरती वखते आर्य सुहस्तीनो शिष्य थयो हतो. बोजा जन्ममां ते राजा थयो, ए वखते आर्य सुहस्ती उज्जयिनीमां जीवन्तस्वामीनी प्रतिमानुं वंदन करवा माटे आव्या त्यारे रथयात्रामा एमने जोईने संप्रतिने पूर्वजन्मनु स्मरण थयु अने ते आचार्यनो शिष्य अने मोटो प्रवचनभक्त थयो. संप्रतिनो राजपिंड आर्य सुहस्तीना शिष्यो वापरता हता ए निमित्त महामिरि अने सुहस्ती ए बन्ने आचार्यों बच्चे मतभेद थयो हतो, जेमा छेवटे सुहस्तीए क्षमा मागी हती.
ए समये साडीपचीश आर्यदेशो सिवायना प्रदेशोमां जैन साधुओनो विहार थतो नहोतो. आथी संप्रतिए पोताना सरहदी मांडलिकोने बोलावी तेमने जैन धर्भनो उपदेश आप्यो, अने साधुओ ज्यारे एओना देशमा विहार करे त्यारे एमनी प्रत्ये केवा प्रकारचं प्रवचनोचित वर्तन थq जोईए एजें सूचन कयु. पछी संप्रतिए राजपुरुषोने साधुवेश धारण करावी ए देशोमां मोकल्या, अने ए शैते त्यांनी प्रजाने साधुओ साथे केवी रीते वर्तवु एनी विधिथी परिचित बनावी. पछौथी साधुओ पण त्यां जवा लाग्या, अने सरहदी देशो 'भद्रक'-विहार योग्य बन्या. आ प्रमाणे संप्रतिए आन्ध्र, द्रविड, महाराष्ट्र, कुडुक आदि सरहदी प्रदेशो, जे अनेक अपायोथी भरेला हता तेमां साधुओनो सुखविहार प्रवर्ताव्यो.' ___ संप्रति राजा ए जैन इतिहासमां मोटो प्रवचनभक्त राजा गणाय छे. तेणे सवा करोड जिनचैत्य, सवा करोड जिनबिंब, छत्रीस हजार जीर्ण जिनचैत्योनो उद्धार, पंचाणु हजार पितळनां बिंब तथा हजारो उपा. श्रयो कराव्यां होवानी अनुश्रुति छे.' आजे पण कोई स्थळे भूगर्भमा दटायेली प्रतिमा मळे छ एमे श्रद्धालु जैनो संप्रति राजाना समयनी माने छे.
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