________________
२१२. ]
[ हरन्तः संनिवेश
प्रदेश जे ए समये आभीर देश तरीके ओळखातो हतो त्यां हती, एटले हरंत संनिवेश पण एटला प्रदेशमां क्योंक होवा संभव छे. जुओ आभीर, ब्रह्मद्वीप, समिताचार्य
१ पिनिम, पृ. ३१
हरिभद्रसूरि
याकिनी महत्तरासूनु (याकिनी नामे साध्यीना धर्मपुत्र ) हरि - भद्रसूरि आगमोना पहेला संस्कृत टीकाकार छे. एमनो समय आचार्य जिनविजयजीए सं. ७५७ थी ८२७ ई. स. ७०१ थी. ७७१ सुधीनो निश्चित कर्यो छे' हरिभद्रसूरि पूर्वाश्रममां चित्रकूटना समर्थ विद्वान ब्राह्मण हता. एमना परंपरागत वृत्तान्त माटे जुओ 'प्रभावकचरित 'मां' हरिभद्रसूरि चरित. '
१५
आममो उपरनी हरिभद्रसूरिनी संस्कृत टीकाओमां ' आवश्यक, ' 'दशवैकालिक, " ' अनुयोगद्वार," तथा ' नंदिसूत्र " उपरनी टीकाओं मुख्य छे. एमनी टीकाओना उल्लेख अने आधार पछीना समयनी आगमटीका ओमां अनेक स्थळे आपवामां आज्या छे; जेम के --- ' तत्त्वार्थ सूत्र' उपरनी हरिभद्रसूरिनी वृत्तिनुं उद्धरण मलयगिरिए 'जीवाभिगम सूत्र' उपरनी वृत्तिमां आप्युं छे. हरिभद्रनी 'अनुयोगद्वार' टीकानो आधार पण मलयगिरिए 'ज्योतिष्करंडक' वृत्तिमां आप्यो छे. वळी "बृहत्कल्पसूत्र 'ना टीकाकार क्षेमकीर्त्तिए हरिभद्रसूरिकृत 'पंचवस्तुक 'मांथी,' 'श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र 'ना वृत्तिकार रत्नशेखरसूरिए 'दशवैकालिक 'नी हरिभद्रकृत वृत्तिमांथी, तथा कल्पसूत्र 'ना टीकाकार धर्मसागरे हरिभद्रकृत 'पंचाशक 'मांथी,' अवतरण आभ्यां छे, अने ' कल्पसूत्र 'ना बीजा टीकाकार विनयविजये 'पंचाशक' उपरनी नवांगोवृत्तिकार अभयदेवसूरिंनी टीकानों पण Here आयो छे." हरिभद्रकृत कथानक ' धूतख्यान 'नुं वस्तु पण प्राचीनतर आगमसाहित्यमां प्राप्त थाय छे. १२ हरिभदनी पछी थयेला
.
6
१००/
११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org