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लार एवं थई शके ) कहे छे ते वीजा प्रदेशोमां 'थिल्लि' तरीके ओळखाय छे." एक खास प्रकारनी वनस्पति लाटवासीओमां 'इकडा' (अर्वाचीन गुज. 'ईकड' ) नामे प्रसिद्ध छे." लाट अने महाराष्ट्रना वतनी चोखाने 'कूर ' कहे छे; एने ज पूर्वदेशना वासीओ 'ओदन,' द्राविडो 'चोर' अने आन्ध्रो — कनायु' कहे छे. ___ लाटनी केटलीक रूढिओनो पण निर्देश छे. 'निशीथचूर्णि' प्रमाणे, लाटमा मामानी दीकरी गम्य छे, पण माशीनी दीकरी अगम्य छे. 'स्थानांगसूत्र 'नी अभयदेवसूरिनी वृत्ति प्रमाणे लाटदेशमा 'मातुलगिनी'-माशी गम्य छे, पण अन्यत्र ते अगम्य छे." ____ आ छेल्लो उल्लेख चिन्त्य लागे छे, केम के सामान्य रीते आवं बने नहि. जो के टीकानो पाठ आ बाबतमा स्पष्ट छे. तो शुं अर्थनी स्पष्टता होवा छतां पाठमां कोई प्रकारनी भ्रष्टता प्रवेशी हशे ?"
'निशीथचूर्णिमा प्राकृत शब्द 'भोयडा 'नी समजूती आ प्रमाणे आपी छेः लाटवासीओ जेने 'कच्छ ' कहे छे ते महाराष्ट्रमा ‘भोयडा' कहेवाय छे. स्त्रीओ बालपणथी मांडीने लग्न थया बाद सगर्भा थतां सुधी कच्छ बांधे छे. सगी थाय त्यारे भोजन करवामां आवे छे, वजनाने बोलावी वस्त्र पाथरवामां आवे छे, अने ए समयथी कच्छ बांधवानुं बंध थाय छे."
लाटदेशमा वर्षाऋतुमां गिरियज्ञ अथवा मत्तबाल-संखडि नामे उत्सव थाय छे. भूमिदाह ए पण एजें बीजुं नाम छे. लाटवासीओं श्रावणपूर्णिमाने दिवसे आषाढी पूर्णिमा करे छे" एम 'आवश्यक चूर्णि' नोंधे छे. दक्षिणापथमां लोहकार अने कलाल जात्यधम गणाय छे तेम लाटमां चर्मकार अधम गणाय छे."
लाटदेशनी स्त्रीओना रूप अने बिदग्धतानुं वर्णन करतो एक श्लोक आगमसाहित्यमा केटलेक स्थळे उद्धत करवामां आव्यो छे."
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