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टीकाकारोए नोंव्यु छ (पृ. १२८), परन्तु ए वृत्ति पण जेसलमेरना भंडारमाथी जडी छे. . भाषाशास्त्र : भारतीय आर्य भाषानी द्वतीयक भूमिकाना अभ्यास माटे विपुल सामग्री आगमोमांथो मळे एमां वशुं आश्चर्य नथी. बधा ज मूळ आगमग्रन्थो प्राकृतमा छे एटली हकीकत ए विषयमा एमनु महत्त्व बताववा माटे बस छे. आ प्रस्तावनाना प्रारंभमा ज कह्यु छे ते प्रमाणे, जुदा जुदा सूत्रग्रन्थोनी भाषाना स्वरूपमां केटलोक नोंधपात्र तफावत छे. वळी आगमसाहित्यनी पहेली संकलना मगधमां थई अने त्यार पछीनी संकलनाओ ईसवी सननी चोथी शताब्दीमा एटके के वीरनिर्वाण पंछी नवमी शताब्दीमां मथुरा अने वलभीमां थई अने सर्व आगमो एनी ये पछी एक सैका बाद देवर्धिगणिना अध्यक्षपणा नीचे वलभीमां एकसामटा लिपिबद्ध थया, ए बधा समय दरमियान तेमज त्यार पठी एनी नकलो अने नकलोनी पण नकलोनी जे अनेक शाखाप्रशाखाओ थई तेने परिणामे ए ग्रन्थोनी भाषामा अनेकविध फेरफारो थया हशे, तोपण भारतीय आर्य भाषानी प्राकृत भूमिकाना अध्ययन माटे एक तरफ जैन आगमसाहित्य अने बोजी तरफ पालि साहित्य ए बन्ने मळी परम महत्त्वनी सामग्री पूरी पाडे छे. मूळ आगमो तथा ते उपरनां नियुक्ति अने भाष्योनी आर्ष प्राकृत, चूर्णिओनी आ करतां भिन्न तो पण आर्षनी कोटिमा ज गणवी पडे तेवी प्राकृत-जेमा संस्कृतर्नु पण विलक्षण मिश्रण थयेलं घणी वार नजरे पडे छे, अने मध्यकाळनी संस्कृत वृत्तिओमांनां प्राकृत कथानको, जेमनी भाषा केटलीक वार चूर्णिओनी लगोलग आवी जाय छे तो केटलीक बार स्पष्ट रीते प्रकृष्ट महाराष्ट्री प्राकृत होय छे-आ सर्वनुं पूरुं अन्वेषण हजी थयु नथी. आगमसाहित्यनी समीक्षित वाचनाओ बहार पडे त्यारे ज ए कार्य थई शके.
वळी आगमोनी संस्कृत वृत्तिओमा आवता शब्दो अने रूढि
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