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प्रयोगो जेने सामान्य रीते 'जैन संस्कृत' कहेवामां आवे छे--जे एक प्रकारनी 'मिश्र संस्कृत' होई बौद्धोनी — गाथा संस्कृत' साथे एनी तुलना थई शके-जूना गुजरातीनी असरथी जे परिप्लावित होई गुजरातीना सामान्य ज्ञान विना ए समजाय पण भाग्येज, ए कारणे हर्टल जेवा विद्वाने जेने 'प्रादेशिक संस्कृत' ( Vernacular Sanskrit) कही छे, एनो व्यवस्थित अभ्यास एक करतां वधु ग्रन्थो मागो ले एवो विशाळ विषय छे, अने जैन कथासाहित्य तेमज प्रबन्धसाहित्यमां पण ए ज प्रकारनी संस्कृतनो प्रयोग होई एनी अभ्यासमर्यादा आगरसाहित्यनी बहार पण विस्तरेली छे. संस्कृत उपर प्रादेशिक भाषाओए करेली असरना दृष्टिकोणथी ए सर्व साहित्यन अवलोकन फळदायी नीवडशे. संस्कृते लोकभाषाओ साथे केQ समाधान साध्यु ए जेम एमांथी जणाशे तेम लोकभाषानां पण अनेक भुलायेलां रूपो अने अर्थोनी तेमज ए रूपो तथा अर्थोनी पाछळ रहेला मानसिक बळोनी एमाथी भाळ मळशे.
. पण आ पुस्तकनी मर्यादामां आ बधी वस्तुओनो समावेश करवानुं अशक्य हतुं. अहीं तो राजकीय अने सांस्कृतिक अगत्यनी वस्तुओनी साथोसाथ भाषाकीय अगत्यना. पण जे मुद्दा नोंधाया छे तेमांना केटलाक तरफ ध्यान दोय छे. ___ पंजाबचें मूल स्थान (मुलतान ), सौराष्ट्रनुं स्थान (थान ), अने मुंबई पासेनुं स्थानक (थाणा ), एमांना 'स्थान', 'स्थानक ' पदान्तोनो संबंध भाषा अने सामाजिक इतिहासनी दृष्टिए विचारवा अको छे. मुलतान अने थान तो सूर्यपूजानां प्राचीन केन्द्रो छे, थाणा विशे वधु संशोधन आवश्यक छ (पृ. २११). भारतनां प्राचीन नगरोने अंते आवतो संस्कृत 'कृत ' अने प्राकृत ‘कड' पदान्त तथा जावा जेवी भारतनी प्राचीन वसाहतोनां केटलांक नगरोनां नामोनो
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