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'कर्त' पदान्त, ए सर्वनुं साम्य पण ए ज रीते ध्यान खेंचे छे (पृ. ४६-४७ ). ' गिरनार ' अर्वाचीन भाषामां पर्वतवाची विशेषनाम छे, पण एनुं मूळ संस्कृत 'गिरिनगर 'मां छे ( पर्वतनुं नाम तो उज्जयंत छे), अने 'कोडिनार', 'नार' वगेरे अन्य स्थळनामोमांनो 'नार " पण संस्कृत 'नगर 'मांथी प्राकृत ' नअर' द्वारा व्युत्पन्न थयेलो छे (पृ. ६६ ). आगम साहित्याना प्राचीनतर अंशोमां, पुराणोनी जेम, अर्वाचीन भरूचने माटे, ‘भरुकच्छ ' प्रयोगनी व्यापकता छे ए वस्तु सूचवे छे के ' भरूच 'नी व्युत्पत्ति, सामान्य रीते मनाय छे तेम, संस्कृत 'भृगुकच्छ 'मांथी नहि, पण ' भरुकच्छ 'मांथी ' भरुअच्च' द्वारा साधवानी छे (पृ. ११०-१२ ). ' खेट' अने तेनी साथै संबंध घरावतां नामोनी चर्चा अगाउ करेली छे. कुडुक्क (पृ. १५९ ), लाट (पृ. १५९-६० ), कोंकण (पृ. ५३ ), महाराष्ट्र (पृ. १३५ ) आदि प्रदेशोनो भाषाना लाक्षणिक शब्दप्रयोगोनी नोंध टीकाकारोए वारंवार करेली छे. एक प्रदेशनी भाषाना शब्दो वगर समज्ये बीजे बोलनार केवी रीते हास्यपात्र थाय छे ए पण बतायुं छे (पृ. १३५ ).
लोकवार्ता अने पुराणकथा : जैन साहित्यनो एक मोटो भाग कथाप्रधान छे. आगमसाहित्यना चार अनुयोगो पैकी एक कथानुयोग छे. मूळ आगमो तथा ते उपरनी चूर्णिओ अने टीकाओमां अर्धऐतिहासिक कथाओ अने लोककथाओनो विपुल भंडार छे. जैनोना कथासाहित्यना उद्भव अने विकासनो तुलनात्मक अभ्यास ए एक स्वतंत्र विषय छे, अर्ही केवळ आ पुस्तकने अनुलक्षीने प्रस्तुत कथ वितव्य रजू कर्तुं छे.
अगडदत्त (पृ. १-५ ), अड्डण (पृ. ६-८ ), इन्द्रदत्त (पृ. २३ ), कोक्कास (पृ. ५०-५२ ) आदिनी कथाओ लोकवार्ताओ छे; जो के एमां ऐतिहासिक अनुश्रुतिओना अंशो रहेला छे
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