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मां नोघायला एवा ग्रन्थो विशे जोईए. चौद पूर्व दृष्टिवाद विशेना, उल्लेखो देर ठेर मळे छे. 'नन्दिसूत्र' मां तो एनो अनुक्रम पण आप्यो छे. पूर्वो घणा सैका पहेलां नाश पानी गयेलां होवा छतां
- अथवा कदाच ए कारणथी पछीना काळमां तमाम जैन ग्रन्थकारो तथा सामान्य जैन प्रजाना मानस उपर पण एनो अद्भुत महिमा अंकित थयेलो रह्यो छे.
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अन्य विलुप्त रचनाओमां कालकाचार्यकृत 'प्रथमानुयोग' (पृ. ४०), आचारांगसूत्र' ना ' शस्त्रपरिज्ञा' अध्ययनना विवरणरूपे ' लखायेली गोविन्दाचार्यनी ' गोविन्द निर्युक्ति' (पृ. ६८–६९), पादलिप्ताचार्यकृत महान प्राकृत कथाप्रन्थ ' तरंगवती ' अथवा 'तरंगलोला' (पृ. ९८ ) तथा एमनी ज बीजी एक रचना 'कालज्ञान ' (पृ. ९९), ' तत्वार्थसूत्र' उपरनी आचार्य मलयगिरिनी वृत्ति ( पू. १२८), 'निशीथसूत्र' उपर सिद्धसेननी टीका (पृ. १९७ ), 'योनिप्राभृत' शास्त्र (पृ. १९७), 'विशेषावश्यकभाष्य' उपर जिनभद्रगणिनी स्वोपज्ञ टीका (पृ. २२०), इत्यादिनो उल्लेख थई शके. शीलाचार्य, अभयदेवसूरि, मलयगिरि आदि आगमोना टीकाकारोए एवी पूर्वकालीन टीकाओना उल्लेख कर्या छे, जे आजे मळती नथी (१. ११, १२९, १७७, इत्यादि ) कदाचित् एमनी सुविशद अने विस्तृत टोकाओ ज पूर्वकालीन टीकाओनी विलुप्तिमां निमित्त नहि बनी होय ?
सातवाहन हालना प्राकृत सुभाषितसंग्रह 'गाथा सप्तशती 'मां पादलिताचार्यनी गाथाओ उद्धृत थयेली छे ( १ ९९ ) ते कां तो ' तरंगवती 'मांथी होय अथवा एमनी बीजी कोई कृतिमांथी होय. 'ज्योतिष्करंडक' उपरनी पादलिप्ताचार्यनी वृत्ति नष्ट थयेली मनाती हती, पण ते जेसलमेरना ग्रन्थभंडारमाथी थोडा समय पहेलां पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीने मळी छे ( पू. ९८ ) एज प्रमाणे 'जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति 'नी मलयगिरिनी वृत्ति नाश पामी होवानुं ए ग्रन्थना बीजा बे
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