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[ अगडदत्त स्पष्ट छ के बन्ने वृत्तिओमां आपेली अगडदत्तनो कथा बे विभिन्न परंपराओने अनुसरे छे. शान्तिसूरिनी वृत्तिमांनी कथा अति संक्षेपमां, सरल गद्यमां रजू थयेली छे, ज्यारे नेमिचन्द्रनी टीकामांनी कथा ३२९ पद्योमा विस्तरेली होई एक स्वतंत्र कृति बनी रहे छे. बन्नेय संस्कृत टीकाओमां आ कथाओ तो प्राकृतमा ज छे ए दावे छे के तुलनाए पछीना समयनी टीकाओमां बन्यु छे तेम, आ कथाओ वाचीनतर मूल ग्रन्थोमांथी यथावत् उद्धृत करेली छे. उत्तराध्ययन सूत्र उपरनी चूर्णि (पृ. ११६ )मां चारेक पंक्तिमा अगडदत्तनी कथानुं मात्र सूचन करवामां आवेलुं छे.
बौद्ध अथवा ब्राह्मण साहित्यमा क्यांय अगडदत्तनी कथानुं स्पष्ट सारूपान्तर जोवामां आवतुं नथी. एवं स्वरूपान्तर प्राप्त थाय तो मूळ कथामुं स्वरूप तेमज समय मक्की करवामां ए अवश्य उपयोगी थाय, केम के ए सो स्पष्ट छे के जैन कर्ताए एक पराक्रमी क्षत्रिय युबकनां साहसोनु निरूपण करती लोककथाने धर्मकथानुं रूप आप्यु छे.
जैम आगमेतर साहित्यमा अगडदत्तनी कथा एना सौथी प्राचीन स्वरूपे संघदासगणिकृत बृहत् प्राकृत कथाग्रन्थ 'वसुदेवहिंडी' (ई. स.ना पांचमा सैका आसपास) जे गुणाढचनी लुप्त 'बृहत्कथा'नू जैन रूपान्तर छे तेमां (पृ. ३७-३९) छे. शान्तिसूरिए जे कथानक उद्धृत कयु छे तेनी उपर 'वसुदेव-हिंडी' नी स्पष्ट असर छे अने केटलेक स्थाने तो देखीतुं शाब्दिक साम्य छे, ज्यारे नेमिचन्द्रे उद्धरेलु कथानक, पात्रो अने स्थानोनां भिन्न नामो तथा केटलाक भिन्न कथाप्नसंगो सूचवे छे ते प्रमाणे, कोई जुदी परंपराने अनुसरे छे.'.
___ अगडदलनी कथा एक लोकप्रिय जैन धर्मकथा गणाई छे. ए विशे संस्कृतमा एक 'अगडदत्त पुराण' रचायु छे, अने जैन गुर्जर साहित्यमा अगडदत्त विशे अनेक नानी मोटी कृतिओ प्राप्त थई छे...
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