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कोटिपताका चडावता ( पृ. ६४ ) ' कोटिध्वज' तथा एमांथी व्युत्पन्न थयेला गुजराती शब्द 'कोटिधज' नो संबंध आ साथे जोडाय छे. सतीनो रिवाज कोई काळे चौलुक्योमा विशेष प्रचलित हशे एम एक सुभाषित उपरथी लागे छे ( 2. ७१-७२). आ उपरांत आमीर, मालव आदि जातिओ आनंदपुर, डिंभरेलक, ताम्रलिप्ति, द्वीप, मथुरा आदि नगरो तथा कोंकण, बन्नासा ( बनास नदी) आसपासनो भाग, महाराष्ट्र, लाट, सिन्ध, सुराष्ट्र आदि प्रदेशोनी विशिष्टताओ तथा लाक्षणिक रीतरिवाज माटे आ ग्रन्थनां ते ते शीर्षको जोवा विनंति छे.
वाणिज्य : वाणिज्य विशे पण केटलीक अगत्यानी माहिती मळे छे. त्रिभुवननी सर्व वस्तुओं जेमां मळे एवा वस्तुभंडारो - ' कुत्रिकापण '- विशेना उल्लेखो खास ध्यान खेंचे छे. उज्जयिनी अने राजगृह जेवां प्राचीन भारतनां महान नगरोमां एवा भंडारो हता. एमां वस्तुनुं मूल्य खरीदनार व्यक्तिना सामाजिक दरज्जा प्रमाणे लेवामां आवतुं ए वात खूब रसप्रद छे (पृ. २६-२७, ४४-४५ ) कुत्रिकापण साथै संबंध धरावती केटलीक लोककथाओ नोंवायेली छे ( पृ. ११२, ११५-१६) ए बतावे छे के लोकमानसे एनी स्मृतिने केवी रीते संघरी हती. भरुकच्छ पासेनुं भूततडाग कुत्रिकापणमांथी खरीदायेला एक भूते बांक्युं हतुं एवी अनुश्रुति छे.
वेपारना एक मथक तरीके 'द्रोणनुख 'नी व्याख्या उपर स्थळनामोनी चर्चा करतां आपी छे. वेपारनुं केन्द्र होय एवा नगरने ' पत्तन' पण कहेवामां आवतुं ' पत्तन' बे प्रकारनां होयः ज्यां जलमार्गे माल आवे ते जलपत्तन, जेमके द्वीप ( दीव) अने काननद्वीप; ज्यां स्थळमार्गे माल आवे ते स्थलपत्तन, जेमके मथुरा अने आनंदपुर. केटलाक टीकाकारोए प्राकृत 'पट्टण' शब्दनां ' पड्डन '
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