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शान्तिसूरि ]
[ १७५ शान्तिचन्द्र वाचक - तपागच्छना सकलचन्द्र वाचकना शिष्य. एमणे ' जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति' उपर 'प्रमेयरत्नमंजुषा' नामे टीका रची छे. ए टोकाने अंते आपेली ५१ श्लोकनी विस्तृत प्रशस्ति' प्रमाणे, एनी रचना सं. १६५१= ई. स. १५९५ मां थई हती ( श्लो. १९ ). सं. १६१०ई. स. १६०४मां राजधन्यपुर-राधनपुरमा केटलाक समकालीन जैन विद्वानोने हस्ते विजयसेनसूरिनी समक्ष एनुं संशोधन थयु हतुं . (श्लो. ३४-४०). एना लेखन अने शोधनमां कर्ताना शिष्य तेजचन्द्रे सहाय करी हती ( श्लो. ४२). रत्नचंद्रे गुरुभक्तिश्री एना अनेक आदर्शों तैयार कर्या हता (श्लो. ४९ ) अने लिपिकलामां चतुर धनचन्द्रे एनो प्रथमादर्श लख्यो हतो ( श्लो. ५१ ).
१ प्रशा, पृ, ५४३-४६. शान्तिचन्द्र अने तेमना अन्य प्रन्थो माटे जुओ जैसाइ, पृ. ५४८ .५५. शान्तिसागर उपाध्याय ____ तपागच्छना उपाध्याय धर्मसागरना शिष्य श्रुतसागरना शिष्य. एमणे सं. १७०७ ई. स. १६५१मां पाटणमा · कल्पसूत्र' उपर 'कौमुदी' नामे वृत्ति रची छे.'
१ ककौ, प्रशस्ति शान्तिसूरि
शान्तिसूरि थारापद्रीय गच्छना आचार्य हता. एमणे 'उत्तराध्ययन सूत्र' उपर 'पाइअ टीका' नामे प्रसिद्ध प्रमाणभूत टीकानी रचना करी हती.'
'प्रभावकचरित 'ना १६ मा 'वादिवेताल शान्तिसूरिचरित 'मां आ आचार्य- चरित विस्तारथी आपेलुं छे. तेओ पाटण पासेना उन्नतायु-ऊण गामना वतनी हता (श्लो. ९-१८). एमना गुरुर्नु नाम विजयसिंह हतुं (श्लो. ७). भोज राजाना आश्रित कवि
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