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[ सुन्दरीनन्द सुन्दरीनंदे तेने भोजन वहोराव्यु. पछी साधुए तेनी पासे पात्र उपडाव्यु अने पोतानी साथे चलाव्यो. सुन्दरीनन्दना मनमा हतुं के 'हमणां भाई मने रजा आपशे.' पण साधु तो तेने पोताना निवास ज्यां हतो ते उद्यान सुधी लई गया. लोकोए हाथमां पात्र सहित नंदने जोयो, अने कहेवा लाग्या के 'सुन्दरीनंदे दीक्षा लीधी छे !' एटलामां तो उद्यानमां साधुए नंदने देशना आपी, पण उत्कट रागवाळो होवाने कारणे तेने प्रतिबोध पमाडी शकायो नहि. साधु वैक्रिय लब्धिवाळा-इच्छा मुजबनां रूपो उत्पन्न करवानी शक्तिवाळा हता. तेमणे वानरयुगल विकुव्यु, अने नंदने पूठ्यु के, 'सुन्दरी अने वानरी बच्चे केटलुं अंतर !' नंदे उत्तर आप्यो, 'भगवन् ! सरसव अने मेरु जेटलं.' पछी साधुए विद्याधरमिथुन वि कुव्यु अने नंदने पूछयु, एटले तेणे उत्तर आप्यो के 'विद्याधरी अने सुन्दरी तुल्य रूपवाळां छे.' पछी साधुए देवमिथुन विकुन्यु, एटले ए देवांगनाने जोईने नंद बोल्यो के 'भगवन् ! आनी
आगळ, सुन्दरी वानरी जेवी छे.' साधुए कह्यु के 'आ तो थोडा धर्मथी पामी शकाय छे.' आ पछी साचा धर्मनुं फळ विचारीने सुन्दरीनन्दे दीक्षा लीधी.'
बुद्धनो ओरमान भाई नंद पोतानी पत्नी सुन्दरीमा अत्यासक्त हतो, एने पराणे दीक्षा आपवामां आवीहती अने दृष्टान्तोथी वैराग्यमां स्थिर करवामां आव्यो हतो-एनी कथा वर्णवता अश्वघोषना 'सौन्दरानन्द काव्य'ना वस्तुनु कोई स्वरूपान्तर उपर्युक्त कथामां रजू थयु छे एम जणाय छे. ____एक भाई दीक्षित होय अने ते गृहस्थ भाईने त्यां भिक्षा माटे आवी पात्र उपडावी एने पोतानी साथे लई जाय अने पछी दीक्षा आपे ए प्रसंग उपर्युक्त कथानी जेम जंबुस्वामीनी पूर्वभवकथामां भवदत्त अने भवदेवना संबंधमां मळे छे, जे एना प्राचीनतम रूपे 'वसुदेव-हिंडी' (भाषान्तर, पृ. २५-२७)मां प्राप्त थाय छे.
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