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टीकात्मक साहित्य. अर्थात् 'जैन आगमसाहित्य 'नो समावेश 'जैन साहित्य 'मां थई जाय छे.
११ अंग ( मूळ १२ अंग, पण एमांनु बारमुं अंग 'दृष्टिवाद' लुप्त थई गयेलं होवाथी ११ अंग ), १२ उपांग, ६ छेदसूत्र, ४ मूलसूत्र, १० प्रकीर्णक, तथा 'अनुयोगद्वार सूत्र' अने 'नंदिसूत्र' ए २ छूटा सूत्रो मळी कुल ४५ आगमग्रन्थो गणाववामां आवे छे. बीजी एक गणतरी अनुसार ८४ आगमो पण छे. अहीं ४५ आगमवाळी गणतरी अनुसारना ग्रन्थो लीधा छे.
उपर कडं ते प्रमाणे, 'आगमसाहित्य 'मां मूल आगमग्रन्थो उपरांत ते उपरना तमाम टीकात्मक साहित्यनो समावेश थाय छे. टीकात्मक साहित्य चार प्रकारर्नु छ : नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि अने वृत्ति. मूल ग्रन्थो तथा ते उपरनां आ चतुर्विध विवरणोनो अर्थ एकसामटो व्यक्त करवा माटे केटलीक वार 'पंचांगी' शब्दनो प्रयोग करवामां आवे छे. मूल आगमग्रन्थो आर्ष प्राकृत भाषामां छे, जे सामान्य व्यवहारमा 'अर्धमागधी' कहेवाय छे. आगमोने वीतराग-तीर्थकरनी वाणी गणवामां आवे छे अने परंपरा प्रमाणे, ते गणधरभाषित अर्थात् सुधर्मास्वामी जेवा महावीरना गणधर अथवा पट्टशिष्य वडे व्याकृत छे. छतां भाषा, निरूपणरीति, शैली, गद्यपद्यना भेदो वगेरे अनेक रीते आगमोमां अनेक थरो मालूम पडे छे. 'नंदिसूत्र', 'दशवकालिक सूत्र', 'अनुयोगद्वार सूत्र' अने 'प्रज्ञापना सूत्र' जेवां आगमो तो जैन परंपरा प्रमाणे ज अनुक्रमे देवर्धिगणि क्षमाश्रमण, शय्यभवसूरि, आर्य रक्षितसूरि अने आर्य श्याम जेवा व्यक्तिविशेषोनी रचनाओ गणाय छे. भाषाकाय पृथक्करणना धोरणे · उत्तराध्ययन सूत्र' 'आचारांग सूत्र ' 'दशवैकालिक सूत्र' जेवा आगमग्रन्थोने सौथी प्राचीन गणवानुं विद्वानोनुं वलण छे अने एवा ग्रन्थोनो संकलनासमय भगवान महावीरना निर्वाणथी
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