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झाझो अर्वाचीन नहि होय एवं अनुमान थाय छे. पण एकंदरे जोतां, कोई निश्चित प्रमाण न होय तो आगमग्रन्थोने अमुक चोक्कस शताब्दीमां ज मूकवानुं मुश्केल छे. वळी मगधमां, मथुरामां अने वलमीमां एम ऋण वार आगमोनी संकलना थई हती अने छेवटे ई. स. ४५४ मां बलभीमां बधां आगमो लेखाधिरूढ थयां हतां - ए बधा समय दरमियान थयेला भाषाकीय अने बीजां परिवर्तनो ध्यानमा राखवानां छे (जुओ आ ग्रन्थमां देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण, नागार्जुन, वलभी, स्कन्दिल आर्य, इत्यादि ). आगमो अत्यार सुधीमां अनेक बार छपायां छे, पण तेओनी शास्त्रीय, समीक्षित वाचनाओ हजी तैयार थई नथी, ए पण एक मुश्केली छे. आगमसाहित्य अने प्राचीन ग्रन्थभंडारोना आजीवन अभ्यासी पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीए ए माटेना महाभारत कार्यनो प्रारंभ थोडांक वर्ष पहेलां कर्यो छे अने आपणे आशा राखीए के आपणने नजदीकना भविष्यमां आगमोनी तथा ते उपरना तमाम टीकात्मक साहित्यनी समीक्षित वाचनाओ मळशे.
नियुक्ति अने भाष्य ए मूल आगमग्रन्थो उपर प्राकृत गाथामां थयेला संक्षिप्त विवरण छे. मुद्रित वाचनाओमां तेमज हस्तलिखित प्रतोमां पण घणी वार नियुक्ति अने भाष्यनी गाथाओ एटली भेळसेळ थयेली होय छे के तेमने नियुक्ति अने भाष्य तरीके अलग करवानुं काम घणुं मुश्केल छे. चूर्णि ए प्राकृत गद्यमां- कोई बार संस्कृत अने प्राकृतना मिश्रण जेवा गद्यमा - मूल ग्रन्थोनुं विवरण छे. वृत्ति अथवा टीका ए संस्कृत गद्यमा थयेलां विवरणो छे. जूनामां जूनी उपलब्ध संस्कृत टीकाओ आठमा सैकामां थयेला आचार्य हरिभद्रसूरिनी छे. त्यारपछी शीलांकदेव, शान्तिसूरि, अभयदेवसूरि, द्रोणाचार्य, मलधारी हेमचंद्र अने मलयगिरि जेवा महान आचार्योंए प्रमाणभूत संस्कृत
१. अत्यारे केटलाक शिक्षितो वातचीतमां अर्ध देशी भाषामां अने अर्ध अंग्रेजीमा बोले छे, एना जेवु आ नथी ?
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