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[ मथुरा
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१२२ ] जैन श्रुती बीजी वाचना मथुरामां करी" अने एने देवर्धिगणि क्षमाश्रमणे पोतानी छेवटनो श्रुतसंकलनामा मुख्य वाचना तरीके सर्वसंमत रोते स्वीकारी, ए. वस्तु जैन इतिहासमा घणी महत्त्वत्नी छे, अने माधुरी वाचना माटे मुनि कल्याणविजयजीए निश्चित करेलो समय (वीरनिर्वाण सं. ८२७ थी ८४० ई. स. ३०१ थी ३१४) मान्य राखीए तो, एवं विधान निःसंदेह थई शके के चोथी शताब्दीमां मथुरा जैन धर्मनुं एवं मोढुं केन्द्र हतुं, जेनी बराबरी पश्चिम भारतनुं वलभी ज करी शके एम हतुं.
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भगवान महावीर मथुरामां आव्या हता एवो एक उल्लेख * विपाक सूत्र 'मां छे." आर्य मंगू" अने आर्य रक्षित जेवा आचार्योए मथुराम विहार कर्यो हतो. आर्य रक्षित मथुरामां भूतगुहा नामना व्यंतरगृह- यक्षायतनमां रह्या हता आवश्यक सूत्र 'नी चूर्णिमां एक स्थळे मथुराने ' पाखंडिगब्भ' (सं. पाषण्डिगर्भ ) कं छे, " ए बतावे छे के एमां बौद्धो अने अन्य संप्रदायना अनुयायीओनी वस्ती सारा प्रमाणमा हती.
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मथुराने लगता केटलाक प्रकीर्ण उल्लेखों मळे छे, जेम के - देवतापूजनमा उपयोगी त्रांचा एक वासण मथुरामां 'चंदालक ' तरीके सुपरिचित छे पत्नी ने पुत्रने घेर मूकीने देशावरमा फरता मथुराना वणिकोनी केटलीक कथाओ टीका - चूर्णिओमां छे. उत्तरमथुरानो वणिक वेपार अर्थे दक्षिणमथुरा (मदुरा ) पण जाय छे. अपायवाळा क्षेत्रनो त्याग करवा संबंधमां, जरासंघना उपद्रवने कारणे दशाहोंए मथुरानो त्याग कर्यो हतो ए उदाहरण अपाय छे. आ उपरांत मथुराना अनेक प्रासंगिक उल्लेखो आगमसाहित्यमा छे, " जे आ प्राचीन नगरीनुं ब्राह्मण अने बौद्धनी जेम जैन इतिहासमा पण जे असाधारण महत्त्व छे ए बतावे छे.
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