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सिद्धसेन दिवाकर ] विक्रमादित्यना समकालीन गणवामां आवे छे, तथा विक्रमने जेमणे जैनधर्मी को होवार्नु मनाय छे.
एमने विशेना केटलाक प्रकीर्ण उल्लेखो अागमसाहित्यमा छे एमां सौथी महत्त्वनो उल्लेख केवलीने केवलज्ञान अने केवलदर्शन युगपत् थतुं होबा विशेनो तेमनो मत छे. आगमिक मत एवो छे के केवलीने केवलज्ञान अने केवलदर्शन युगपत्-एक साथे थतुं नथी, पण एक समये केवलज्ञान अने बीजे समये केवलदर्शन एम वारंवार थयां करे छे. सिद्धसेन आ मतने तर्कथी असिद्ध गणे छे. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण जेवा पछीना आचार्योए सिद्धसेनना आ मतनुं खंडन कर्यु छे. आगमसाहित्यमां सिद्धसेन अने जिनभद्रना आ मतांतरोनी वारंवार नोंध लेवामां आवी छे.'
सिद्धसेनकृत ' द्वात्रिंशिकाओ' मांथी कवचित् अवतरण आपबामां आवेलं छे. 'निशीथसूत्र ' उपर सिद्धसेने एक टीका रची हती, एम 'निशीथचूर्णि मांना उल्लेखो उपरथी जणाय छे. पण आजे ए टीका विद्यमान नथी. ' योनिप्राभृत' शास्त्रथी सिद्धसेनाचार्य घोडा बनाव्या होवानो उल्लेख पण छे. एमना सुप्रसिद्ध न्यायग्रन्थ ‘सन्मतितर्क-' नो उल्लेख प्राचीन चूर्णिओमां : दर्शनप्रभावक शान' तरीके करेलो छे.
'न्यायावतार सूत्र' अने 'कल्यागमन्दिरस्तोत्र' ए सिद्धसेननी अन्य कृतिओ छे.
सिद्धसेनना समय विशे विद्वानोमां जबरो मतभेद छे अने ईसवी सननी पहेली शताब्दीथी मांडी सातमी शताब्दी सुधी जुदा जुदा विद्वानोए एमनो समय गण्यो छे.' 'सन्मतितके 'नो प्रस्तावना (पृ. ३५-४३)मां तेमनो समय विक्रमनो पांचमो सैको गणेलो छे. मिस शार्लोट क्रौझेए सिद्धसेनने समुद्रगुप्तना समकालीन गण्या छे."
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