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इन्द्रपुर ]
१ व्यसूम, पृ. ४१-४२
इन्द्रदत्त
चिरकाळ प्रतिष्ठित मथुरा नगरीमा इन्द्रदत्त पुरोहित हतो. प्रासादमां बेठेला एणे नीचे थईने जता जैन साधु उपर पग लटकतो राख्यो अने ए रीते एने माथे पग मूक्यानो संतोष मेळव्यो. एक श्रावक
ए आ जोयुं, अने क्रोधायमान थईने एणे पुरोहितनो पग कापवानी प्रतिज्ञा करी. ए. माटे ए पुरोहितनां छिद्रो शोधवा लाग्यो, पग एमां सफळता नहि मळतां एणे साधुने वात करी. साधुए कह्युं के 'आमां पूछवानुं शुं छे ! सत्कार - पुरस्कार परीषह तो सहन करवो जोइए.' श्रेष्ठीए कं: 'पण में प्रतिज्ञा करी छे.' साधुए पूछयुंः 'पुरोहित ने घेर अत्यारे शुं चाले छे ?' श्रेष्ठीए उत्तर आप्योः ' प्रासाद कराव्यो छे; एना प्रवेशमहोत्सव वखते ए राजाने भोजन आपशे. ' आचार्य बोल्याः 'ज्यारे राजा प्रासादमां प्रवेश करतो होय त्यारे तमारे एने हाथ चीने आघो करवो अने कहेतुं के प्रासाद पडे छे. एटले ए समये हुं विद्यार्थी प्रासादने पाडी नाखीश' पछी श्रेष्ठीए ए प्रमाणे क अने राजाने कर्छु : 'आ पुरोहित तो तमने मारी नाखवा इच्छतो हतो. ' क्रुद्ध थयेला राजाए पुरोहित श्रेष्टीने सोपी दीधो. श्रेष्ठीए पुरोहितो पग इन्द्रकीलर्मा मूक्यो अने पछी कापी नाख्यो. '
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विक्रमना तेरमा कामां गुजरातमां मंत्री वस्तुपाले एक जैन साधुनुं अपमान करनार, वीसलदेव राजाना मामानो हाथ कापी नाख्यो हती - एवी प्रबन्धोमां मळती अनुश्रुति आ कथानक साथे सरखाववा जेवी छे.
१ उशा, पृ. १२५-२६; उने, पृ ४९
इन्द्रपुर
मथुरानुं बीजुं नाम जो के मथुराथी भिन्न एवं इन्द्रपुर नामे
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