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उज्जयिनी
[ ૨૭ आवती. जे माणस दीक्षा लेवानो होय ते पोतानां जरूरी उपकरण, पोते सामान्य माणस होय तो कुत्रिकापणमाथी पांच रूपियानी कीमते खरीदी शकतो, जो ते इभ्य (लक्षाधिपति) अथवा सार्थवाह होय तो तेने एक हजार आपवा पडता अने जो ते राजा होय तो तेने एक लाख रूपिया आपवा पडता. एवी कथा छे के तोसलि नगरवासी एक वणिके उज्जयिनीना कुत्रिकापणमांथी ऋषिपाल नामे एक व्यंतर खरीधो हतो अने पछी तेने प्रसन्न करीने एनी पासे ऋषितडाग नामे एक तळाव बंधाव्यु हतुं." एज प्रमाणे भरुकच्छवासी बीजा एक वणिके कुत्रिकापणमांथी एक मृत खरीयो हतो अने तेनी पासे भूततडाग नामे तळाव बंधाव्यु हतुं. त्रिभुवननी कोई पण सजीव के निर्जीव वस्तु-भूत सुद्धां-कुत्रिकापणमा अलभ्य नहोती एवं आ कथानको सूचवे छे अने लोकमानसमां उज्जयिनी अने राजगृह जेवां नगरोनी वाणिज्यसमृद्धिए केव॑ स्थान जमाव्यु हतुं ए बतावे छे.
प्राचीन भारतना सार्थ मार्गो-'ट्रेड रूट्स'-ना एक महत्त्वना संगमस्थान उपर उज्जयिनी आवेलं हतुं.
एक भोळा पतिने तेनी पुंश्चली पत्नी ऊंटनां लौडां वेचवा माटे उज्जयिनो मोकले छे अने पछी पोते विटसेवा करे छे एवं कथानक पण मळे छे.१८
अहिक समृद्धि साथे जोडायेला मोजशोख अने भोगविलास पण स्वाभाविक रीते ज उज्जयिनीमां प्रवर्तमान हता. 'बृहत्कल्पसूत्र'. वृत्तिमांना एक कथानक प्रमाणे-एक देवीए विधवा- रूप धारण कयु अने दासोओथी वीटायेली ते उपाश्रयमां आवी साधुने वंदन करीने बेठी. साधुए पूछ्यु के 'श्राविका ! तुं क्यांथी आवी छ ? ' त्यारे ते बोली के 'पाटलिपुत्रमा हुँ जन्मो छु अने साकेतना एक
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