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१४४ ]
४ ज्याडि, पृ १२०
५ पुगु, पृ. १६०
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अतिहासिक संशोधन, पृ. ५६१
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मूलदेव
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एक प्रसिद्ध विट अने धूर्त, जे पाछळथी वेणातट नगरनो राजा थयो हतो. 'उत्तराध्ययन सूत्र 'नी चूर्णि तथा ते उपरनी शान्तिसूरि अने नेमिचन्द्र वृत्तिओमां मूलदेवनो वृत्तान्त प्रमाणमां विस्तारथी अने विगतथी आपेलो छे. चूर्णि अने शान्तिसूरि अनुसार, मूलदेव उज्जयिनीनो विट हतो. ( नेमिचन्द्रनाकथन मुजब मूलदेव पाटलिपुत्रनो राजकुमार हतो अने पोताना पिताथी रिसाईने उज्जयिनीमां आवीने रह्यो हतो. ) ते एक मोटो धतकार होवा उपरांत गीतकला अने मर्दनकलामां पण निपुण हतो. उज्जयिनीनी एक सुप्रसिद्ध गणिका देवदत्ता तेनी साथै प्रेममां पडी हती, परन्तु गणिकानी माता अचल नामे बोजा एक धनिक वणिकनो पक्ष करती होवाने कारणे मूलदेवने उज्जयिनी छोडीने चाल्यां जवुं पड्युं हतुं पछी ए दक्षिणमां आवेला वेणातट नगरमां जईने रह्यो . त्यां कोईना घरमा खातर पाडतो हतो त्यारे नगररक्षकोए एने पकड़ी लीधो अने वधस्थान उपर लई जवा मांड्यो. ए दिवसे नगरनो राजा अपुत्र मरण पाम्यो हतो. मंत्रीओ नवा राजानी शोधमां हता. ए माटे अधिवासित करेलो अश्व मूलदेव पासे आवी ऊभो. ( नेमिचन्द्रना कथन मुजब, मूलदेवने जोईने हाथीए गर्जना करी, अश्वे हेपारव कर्यो, भृंगारे अभिषेक कर्यो, चामरे वीजन कयुँ, अने कमळ तेनो उपर आवी रह्युं; ए प्रमाणे पांच दिव्य थयां . ) एटले तेनो राजा तरीके अभिषेक थयो. पछी मूलदेवे उज्जयिनीना विक्रम राजा उपर पत्र लखीने तथा अनेक प्रकारनों भेट मोकलीने देवदत्ता गणिका पोताने सोपवानी विनंति करी, अने विक्रम राजाए देवदत्तानी इच्छा जाण्या पछी, ते कबूल राखी. मूलदेव देवदत्तानी साथै सुखपूर्वक रहेवा लाग्यो. ए समये मंडिक नामे एक
[ मूलदेष
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