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________________ अन्धकवृष्णि ] इतिहासमा पाटणनुं विशिष्ट स्थान छे. आगमनां मूळ प्राकृत सूत्रो मगधमां रचायां तो ए उपरनी सौथी प्रमाणभूत विद्यमान संस्कृत टीकाओ, एक मात्र हरिभद्रसूरिकृत टीकाओना अपवादने बाद करीए नो, अणहिलवाडमां अथवा आसपासना प्रदेशमा रचाई छे. आचारांग अने सूत्रकृतांग सूत्र उपरनी शीलांकाचार्यनी सुप्रसिद्ध टीकाओ पाटणथी थोडाक ज माइल दूर आवेला गंभूता (गांभू )मां लखाई हतो. विक्रमना बारमा शतकना प्रारंभमां अर्थात् ईसवी अगियारमी सदीना उत्तरार्धमां नवांगीवृत्तिकार तरीके जाणीता थयेला अभयदेवसूरिए जैन आगमनां नव अंग उपर प्रमाणभूत टीकाओ पाटणमां रची अने ए ज नगरमां वसता बीजा एक प्रकांड पंडित द्रोणाचार्ये त्यां ज ए टोकाओनुं संशोधन कयु. सं. ११२९ ई. स. १०७३मा दोहडि श्रेष्ठीनी वसतिमा रहीने रचायेली नेमिचन्द्रनी उत्तराध्ययन उपरनी वृत्ति, सं. ११८० ई. स. ११२४मां सौवर्णिक नेमिचन्द्रनी पौषधशाळामां रहीने रचायेली पाक्षिकसूत्र उपरनी यशोदेवसूरिनी वृत्ति, तथा सं. १२२७= ई. स. ११७१मां जीतकल्पसूत्र उपरनी श्रीचन्द्रसूरिनी व्याख्यानी रचना पाटणपां थई. शान्तिसूरिनी उत्तराध्ययन वृत्ति, आचार्य मलय गिरिनी सरल अने शास्त्रीय वृत्तिओ, द्रोणाचार्यकृत ओघनियुक्ति वृत्ति तथा मलधारी हेमचंद्रकृत टीकाओ पण पाटणमां रचाई होवी जोईए एम एकंदरे पुरावाओनो विचार करतां अनुमान थाय छे. आगमेतर विषयोमा पण गुजरातनी जे सर्वांगीण साहित्यप्रवृत्तिनुं पाटण सैकाओ सुधी केन्द्र हतुं तेनी चर्चा करवानुं आ स्थान नथी. . ___ वधु माटे जुओ अभयदेवमूरि, द्रोणाचार्य, नेमिचन्द्र, मलयगिरि, यशोदेवमूरि, शान्तिमरि, शीलाचार्य, श्रीचन्द्रसरि, हेमचन्द्र मलधारी इत्यादि. अन्धकष्णि यदुकुळना शौरि राजाना त्र. एओ शौरिपुरमा राज्य करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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