SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०] [ अन्धक हता अने पाछळथी एमणे द्वारकामां आवीने राज्य स्थापयुं हतुं. एमने सुभद्रा राणीथी समुद्रविजय वगेरे दश पुत्रो थया हता, जेओ दश दशाई तरीके ओळखाया. एमणे पोताना मोटा पुत्रने राज्य सोपीने दीक्षा लीधी हती. १ जुओ दशा २ अद, वर्ग १ अभयदेवरि ર चंद्र (पालथी खरतर ) गच्छना आचार्य जिनेश्वरसूरि तथा एमना भाई बुद्धिसागरसूरिना शिष्य आचार्य अभयदेवसूरिए जैन आगमग्रन्थो पैकी नव अंग उपर संस्कृत टीकाओ रची अने तेथी तेओ नवांगीवृत्तिकार तरीके ओळखाया. नींचे प्रमाणे नव अंगो उपर एमनी टीकाओ छे. ज्ञाताधर्मकथा (सं. १९२० ई. स. १०६४), स्थानांग (सं. १९२०), समवायांग (सं. १९२०), भगवंती (सं. ११२८= ई. स. १०७२)*, उपासक दशा, अंतकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण अने विपाक औपपातिक टीका अने प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी गाथा १३३ एमनी रचनाओं छे. आ उपरांत अभयदेवसूरिए जिनेश्वरसूरिकृत षट्स्थानक उपर भाष्य, हरिभद्रसूरिकृत पंचाशक उपर वृत्ति तथा आराधनाकुलक नामे स्वतंत्र ग्रन्थ पण रच्यो छे. वळी अभयदेवसूरिनी विनंतिथी एमना गुरुभाई जिनचंद्र सूरिए 'संवेग रंगशाला' (सं. १९२५ = ई. स. १०६९) नामे ग्रन्थ रच्यो हतो. . अभयदेवसूरिनी उपर्युक्त आगमग्रन्थो उपरनी वृत्तिओनी प्रशस्तिमां उल्लेख मळे छे ते प्रमाणे, ए वृत्तिआनुं संशोधन निर्वृति कुलना द्रोणाचार्ये कर्तुं हतुं. वळी प्रशस्तिओ उपरथी अनुमान थाय छे के द्रोणाचार्य जेमां मुख्य हता तेवी एक पंडितपरिषद आ वृत्तिओना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy