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________________ अभयदेवसूरि ] संशोधनमा रस लेती हती. भगवतीवृत्तिना लेखनमा जिनभद्रना शिष्य यशश्चंद्रे अभयदेवने सहाय करी हती." ___ स्थानांगवृत्तिनी प्रशस्तिमां अभयदेवसूरिए पोतानो वृत्तिरचनाना मार्गमा रहेली मुश्केलीओनो निर्देश करतां उत्तम संप्रदाय-अध्ययनपरंपरानो अभाव, उत्तम ऊहनो अभाव, वाचनाओनी अनेकता, पुस्तकोनी अशुद्धि आदिनो उल्लेख कर्यो छे. खास करीने भगवती सूत्र उपरनी वृत्तिमा एमणे पोताना पूर्वकालीन टीकाकारोना निर्देश कर्या छे, अने ए निर्देशोनुं स्वरूप जोतां ए स्पष्ट छे के ए पूर्वकालीन टीकाओ पैकी अमुक तो एमनी सामे हती, एटलुज नहि पण चूर्णिथी ते भिन्न हती. ___ आ संबंधमां बीजी एक अनुश्रुतिनी नोंध करवा जेबी छे. 'प्रभावकचरित' (सं. १३३४-ई. स. १२७८)ना अभयदेक्सरि-चरित'मां शासनदेवी अभयदेवसूरिने कहे छे के पूर्व निर्दोष एवा शीलांक अथवा कोट्याचार्य नामे आचार्ये अगियार अंगो उपर वृत्ति रची हती; तेमां काळे करीने बे सिवाय बधां अंगोनो विच्छेद थयो छे, माटे संघ उपर अनुग्रह करवा माटे ए अंगोनी वृत्ति रचवानो उद्यम करो.' आ उपरथी अभयदेवसूरिए नव अंगो उपर वृत्ति रची." ___ आ अनुश्रुतिमांना शोलांक आचार्य ते शीलाचार्य होवा जोईए. एने आधारे कहीए तो शीलाचार्यनी आचारांग अने सूत्रकृतांग सिवाय बीजां ११ अंगो उपरनी वृत्तिओ अभयदेवसूरिना समय पहेलां नाश पामी गई हती. आथी अभयदेवसुरिए सुचित करेली वृत्तिओ कोई बीजा विद्वाने रचेली होवी जोईए. आगमसाहित्यना सौथी प्रमाणभूत टीकाकारोमां अभयदेवसूरिनी गणतरी थाय छे. ए टीकाओनी सहाय विना अंगसाहित्यनां रहस्य समजवानुं पछीना समयमां गमे तेवा आरूढ विद्वानो माटे पण लगभग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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