SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलदेव ] [ १४७ दत्ता ) नी प्रणयकथा आवे छे तथा ए भाणनो प्रवक्ता मूलदेवनो मित्र शश छे. मूलदेवनुं 'कर्णीसुत' एवं नाम पण एमां छे. महाकवि बानी ' कादंबरी 'मां विन्ध्याटवीना वर्णनमां एक लिट वाक्यखंडमां कर्णीसुत (मूलदेव) अने तेना ऋण मित्रो - विपुल, अचल अने शरानो उल्लेख छे. काश्मीरी सोमदेव भट्टकृत ' कथासरित्सागर 'ना 'विषमशील लंबक 'नो छेल्ली वार्तामा - ' स्त्रीमात्र कंई नठारी होती नथी. बधे कई विषवल्लीओ होती नथी; अतिमुक्तलता जेवी आत्रने वळगनारी वेलोओ पण होय छे' – ए सूत्र पुरवार करवा माटे मूलदेव पोताना ज रंगीला जीवननो एक प्रसंग राजा विक्रमादित्यने कही संभळावे छे, एमां पण मूलदेवनी साथे एनो मित्र शश छे. सं. १२५५ई. स. ११९९ मां रचायेलं पूर्णभद्र मुनिनुं ' पंचाख्यान', जे 'पंचतंत्र 'नुं ज एक अलंकृत संस्करण छे तेमां ( तंत्र १, कथा १० ) मूलदेव विशेनो एक रसप्रद उल्लेख छे: एक राजानी पथारीपां जू रहेती हती त्यां आवीने एक माकणे पण पोताने रहेवा देवानी विनंति करी. " जूए दाक्षिण्यथी माकणनी विनंति स्वीकारी, कारण के एक वार राजाने मूलदेवनं कथानक कहेवामां आवतुं हतुं त्यारे चादरना एक भागमा रहेली जूए ते सांभळ्युं हतुं. एमां मूलदेवे देवदत्ता गणिकाने कां हतुं के 'पगमां पडीने करेली विनंति पण जे मानतो नथी तेना उपर ब्रह्मा, विष्णु अने महादेव त्रणे कोपायमान थाय छे.' ए वचन संभारीने जूए माकणनी विनंति स्वीकारी. " एक प्रकारनी गुप्त सांकेतिक भाषा मूलदेवप्रणीत होवाने कारणे 'मृलदेवी' नामथी ओळखाती (जुओ कोऊहल- कृत 'लीलावईकहा 'नुं संस्कृत टिप्पण, पृ. २८ ). बळी मूलदेवने स्तेयशास्त्र अथवा चोरशात्रनो प्रवर्तक मानवामां आवे छे." एने मूल श्री, मूलभद्र, करटक, कलांकुर, खरपट, कर्णीसुत आदि नामोथी संस्कृत साहित्यमां ओळखवामां आवे छे. ईसवी सनना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy