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________________ पावलिप्ताधार्य ] ३ अंद, वर्ग १-५ ४ जिरको, पृ. २१६-१९ पत्तन . वेपारनें केन्द्र होय एवं नगर, पत्तन बे प्रकारनां होय छः जलपत्तन अने स्थलपत्तन. ज्यां जळमार्गे माल आवे ते जलपत्तन अने स्थलमार्गे आवे ते स्थलपत्तन, जलपत्तनना उदाहरण तरीके द्वीप ( दीव ) अने काननद्वीपना नाम अपाय छे, ज्यारे स्थलपत्तन तरीके मथुरा अने आनंदपुर आपवामां आवे छे.' केटलाक टीकाकारोए प्राकृत — पट्टण' शब्दनां पट्टन अने — पत्तन' एवां बे संस्कृत रूपो स्वीकारीने बेना जुदा अर्थ आप्या छः जेम के ज्यां नौकाओ मारफत जवाय ते पट्टन अने ज्यां गाडांमां के घोडे बेसीने तेम ज नौका मारफत जवाय ते पत्तन. कालक्रमे — पत्तन' सामान्य नाममांथी विशेष नाम बन्यु: अने गुजरातनुं मध्यकालीन पाटनगर 'अणहिलपत्तन' मात्र ‘पत्तम' एवा ढूंका नामे जाणीतुं थयुं. ' कल्पसूत्र 'नी · कौमुदी' नामे टीकाना कर्ता शान्तिसागर पोते ए टीका ‘पत्तनपत्तन 'मां -एटले के पाटणनगरमां लखो होबार्नु जणावे छे. १ उशा, पृ. ६०५; आशी, पृ. २५८; बृकमा, गा १०९०; बृकक्षे, भाग २, पृ. ३४२; वळी जुओ ज्ञाधअ, पृ. ५५, १४०. २ जुओ भरुकच्छ. ३ कको, प्रशस्ति, श्लो. ४. पाण्डुमथुरा जुओ मथुरा पादलिप्ताचार्य एक प्रभावक आचार्य, जेमनुं नाम सौराष्ट्रना प्रसिद्ध जैन तीर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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