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________________ [ पादलिप्ताचार्य पादलिप्तपुर-पालीताणा साथे जोडायेलं छे. पादलिप्ताचार्य पाटलिपुत्रमा मुरुंड राजाना दरबारमा हता. एक वार मुरुंड राजा उपर यवनोए मीणवाळु सूतर, कापीने सरखी करेली लाकडी तथा सुंवाळी मुद्रित दाबडी मोकली अने साथे संदेशो कहाव्यो के ' सूत्रनो अंत, लाकडीनो आदिभाग अने समुद्गकनुं द्वार बतावो.' पण आ कार्य कोई करी शक्यु नहि. छेवटे पादलिप्ते सूतर ऊना पाणीमां नाल्युं, एटले मीण ओगळी गयुं अने छेडा देखाया: लाकडी पण पाणीमां नाखी, एटले मूळनो भाग भारे होवाथी अंदर डूब्यो अने. दाबडी उपर लाख हती ते गरम पाणीमां बोळीने उखाडी.' मुरुंड राजानी शिरोवेदना वैद्यो माडी शक्या नहेाता, ते पादलिप्ताचार्य मंत्रशक्तिथी मटाडी हती एवं कथानक मळे छे. पादलिताचार्य यंत्रविद्यामां पण कुशळ हता. तेमणे एक वार राजानी बहेनने बराबर मळती यंत्रप्रतिमा बनावी हती. ए प्रतिमा उन्मेषनिमेष करती हाथमां पंखो लईने ऊभेली हती. पादलिप्ताचार्य ' तरंगवती' नामनी एक विख्यात प्राकृत धर्म कथा रची हती, जेना उल्लेखो आगमसाहित्यमां तेम ज अन्यत्र अनेक स्थळे प्रात थाय छे. मूळ कथा तो सैकाओ पहेला नाश पामी गई छ, पण पादलिपनी पछी थयेला परन्तु जेनो चोकस समय अनिश्चित छे एवा आचार्य वीरभट्ट के वीरभद्रना शिष्य नेमिचन्द्रे १९०० प्राकृत गाथाओमां करेलो तेनो संक्षेप मात्र हालपां उपलब्ध छे. पादलिसचार्ये ' ज्योतिष्करंडक' उपर वृत्ति लखी हती एम आगमसाहित्यना सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरिना कथन उपरथी स्पष्ट छे. आ वृत्ति नष्ट थई गई होपर्नु मानवामां आवतुं हतुं, पण एनी हस्तलिखित प्रति पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीए जेसलमेरना ग्रन्थभंडारमाथी शोधी काढी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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