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________________ भद्रगुप्ताचार्य ] [ १०९ सुप्रसिद्ध संस्कृत व्याकरणकाव्य ‘रावणवध ' जे सामान्य रीते ' भट्टिकाव्य ' तरीके ओळखाय छे तेनो कर्ता 'महाब्राह्मण महायाकरण स्वामिपुत्र भट्टि' वलभीनो हतो, एटले बलभीमा भट्टि नाम प्रचलित हतु; अने देवगिणिनो निवास पण वलभोमा हतो, एटले भट्टि ए देवर्धिगणिर्नु अपर नाम हाय ए कदाचित् संभवे छे. १ अत्र दूषगणिक्षमाश्रमणशिष्या भट्टियाचार्या ब्रवते...सूकृचू , पृ ४०५ २ नंम, पृ. ६५. जुओ देवद्धिगणि क्षमाश्रमण. भण्डीरवन मथुरानी पासे आवेलुं एक उद्यान. त्यां मंडीर यक्षनुं आयतन हतुं. लोको बळदगाडा जोडीने एनी यात्राए जता. जुओ कम्बल-सम्बल, मथुरा भद्रगुप्ताचार्य उज्जयिनीवासी एक आचार्य. आर्य रक्षित दशपुरमा पोताना गुरु तोसलिपुत्राचार्य पासे अगियार अंग अने जेटलो दृष्टिवाद तेमने अवगत हता तेटलो शीख्या. पछी उज्जयिनीमां दृष्टिवादना ज्ञाता आर्य वन छे एम सांभळीने तेओ उज्जयिनी गया. त्यां भद्रगुत नामे एक वृद्ध आचार्यनी संलेखना प्रसंगे आर्य रक्षित निर्यामक तरीके रह्या अने तेमनी उत्तम शुश्रूषा करी. भद्रगुप्ताचार्य कालधर्म पाम्या पछी रक्षिते वज्रस्वामी पासे साडानव पूर्वोनो अभ्यास कर्यो. पोताना अंतकाळे भद्रगुहा कार्ये आर्य रक्षितने कयुं हतुं के “ तमारे आर्य वज्रनी साथे रहेवु नहि, कारण के जे तेमनी साथे रहेशे ते तेमनी साथे ज मरण पामशे. " आथी आय रक्षित वज्रस्वामोथी अलग रह्या हता.' १ आचू , पूर्वभाग, पृ. ४०३-४; उने, पृ. २३; ककि, पृ. १७०-७३; कदी, पृ. १४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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