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मरुस्थल ]
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मरुविषयमां पाणीनी तंगी छे अने पाणी मेळवावा माटे रात्रे दूर सुधी जवुं पडे छे. जल विकलताने कारणे मरुस्थलमा धान्यसंपत् जोईए एवी थती नथी. निष्णुण्यपिपासित मनुष्योने जेम पीयूष प्राप्त थतुं नथी तेम मरुभूमिमां कल्पवृक्षनो प्रादुर्भाव थतो नथी. "
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मरुमंडलनी केटली विशेषताओ पण नोधवामां आवी छे: यवनालक ' ( प्रा. जवणालओ ) नामनो कन्या चोलक ' - कन्याओनो पहेरवेश मरुमंडलादिमां प्रसिद्ध होवानुं कथं छे. एमां चणियोचोळी भेगां सीवी लेवामां आवतां, जेथी वस्त्र खसी पडे नहि. कन्याना माथी ते पहेरातो, एथी ए प्रकारना पहेरवेशने ऊपो ' सरकंचुक ' पण कदेवामां आवतो.
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आ उल्लेख विशिष्ट महत्वनो छे, केम के एमां कन्याओना खास पोशाकने निर्देश छे. वळी प्राचीन संस्कृत साहित्यमां स्त्रीओना पहेरवेशमां ' नीवि 'नो निर्देश आवे छे ते वस्त्रनी गांठ छे, चणियानी दोरीनी गांठ नथी, ए दृष्टिए पण आ वस्तु विचारवा जेवी छे. संभव छे के साडीनी नीचे चणियो पहेरवानुं कोई परदेशी जाति के जातिओनी असरथी दाखल थयुं होय; दक्षिण भारतमां चगियानो पहेरवेश नथीए पण आदृष्टि सूचक छे उपर्युक्त उल्लेखमांना 'जवणालओ' शब्दनुं 'जवण' (सं. यवन. ए शब्द शिथिल अर्थमां गमे ते परदेशी जाति माटे प्रयोजातो हतो ए जाणीतुं छे ) अंग पण घणुं करीने ए ज सूचवे छे. ए 'कन्याचोलक ' मरुमंडलादिमां प्रसिद्ध होवानुं कथं छे, एटले मरुमंडल सिवायना बीजा केटलाक प्रदेशोमां पण एनो प्रचार होवो जोईए. हेमचन्द्रना 'द्वयाश्रय' महाकाव्यमाथी एने लगतो एक रसिक उल्लेख प्राप्त थाय छे. एमां लतागृहमा रहेली मयणलानो 'चोलक ' जोईने एनो भावी पति कर्ण सोलंकी अनुमान करे छे के ए कन्या होवी जोईए
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