SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिन्धु 1 सिनवल्ली सिनवल्ली रण जेवी जगा हती.' कुंभकारप्रक्षेप नगर त्यां आवेलं हतुं. १९९ 'सिनवल्ली 'नुं 'सिन' अंग ' सिन्ध ' शब्दनुं अपभ्रष्ट रूप हशे ? जुओ कुम्भकारप्रक्षेप, वीतभयनगर १ आचू, उत्तर भाग, पू. ३४-३७ सिन्धु [१] सिन्धु नदी: गंगा, सिन्धु वगेरेने महानदीओ कही छे अने तेमना जळने : ' महासलिला जल' कह्युं छे. ' મ ५ [२] सिन्ध देश. सिन्ध आदि देशो' असंयम विषय ' ( ज्यां संयम पाळवो कठण पडे एवा प्रदेश) होवाथी त्यां वारंवार विहार करवानो निषेध करेलो छे. सिन्धु, ताम्रलिप्त (खंभात) आदि प्रदेशोमां मच्छर पुष्कळ होय छे." सिन्धनां ऊंटनुं चर्मः घणुं मृदु होय छे.* सिन्धमां गोरसनो खोराक व्यापक प्रचारमां होवाथी जे सिन्धवासीए दीक्षा लोधी होय ते गोरस विना रही शकतो नथी. " सिन्ध देशमां अग्निने मंगल गणेलो छे, तथा त्यां धोबीओने अपवित्र गणनामां आवता नथी. सिन्धु विषयमां वगर फाडेलां, आखां वस्त्रों परवानो रिवाज छे.' दुर्भिक्षना समयमां मांसभक्षण सामान्य छे, पण सिन्धमां सुभिक्षना समयमा पण लोको मांस खाय छे. त्यां नदीनां पाणीथी धान्य नीपजे छे." सिन्धमां दारू राखवाना पात्रमां पण भोजन गर्हित गणातुं नथी, एवो देशाचार छे. ६ છ ११ १ बृकक्षे, भाग ४, पृ. ९५७ २ ए ज, भाग ३, पृ. ८१६ ३. सूकृच्, पृ. १०१, जुओ ताम्रलिप्ति. ४ आसूच, पृ. ३६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy