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________________ यौगन्धरायण . उपर 'सुखावबोधा' नामे वृत्ति रची हती.' यशोदेवसूरिए संख्याबंध आगमेतर धार्मिक ग्रन्थो उपर पण टीकाओ लखी छे.' १ पाय, प्रशस्ति २ जैसाइ, पृ. २४४ यादव यदुना वंशजो,' जेओ प्रथम शौरिपुरमां अने पछी द्वारकामा वसता हता. १ जैन साहित्य अनुसार यदुना वंशवृक्ष माटे जुओ जैन, अन्श्यन्ट इन्डिया, पृ. ३७६ यौगन्धरायण वत्सराज उदयननो मंत्री. अवंतिना राजा प्रद्योते उदयनने केद पकड्यो हतो, एने छोडाववानो प्रयत्न करतो यौगंधरायण उज्जयिनी आव्यो हतो. उदयन अने वासवदत्ताने हाथणी उपर बेसाडीने नसाडवानी योजना तेणे विचारी, अने पछी ए योजना परत्वे पोताना बुद्विवैभवनुं अभिमान नहि जीरवी शकायाथी मागें जतां ते एक श्लोक बोल्यो के यदि तां चैव तां चैव तां चैवायतलोचनाम् । न हरामि नृपस्यार्थे नाहं यौगन्धरायणः ॥ एज समये नगरमा फरवा नीकळेला प्रद्योत राजाए आ शब्दो सांभळ्या अने कुद्ध दृष्टिथी एनी सामे जोयु. पण यौगंधरायणे गांडपणनो देखाव कों, एटले प्रद्योत पोताना कोपनो निग्रह करोने चाल्यो गयो. थोडा समय पछो वत्सराज अने वासवदत्ता उज्जयिनीथी कौशांबी चाल्यां गयां अने घणो प्रयत्न करवा छतां प्रद्योत एमने पकड़ी शक्यो नहि.' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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