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________________ [. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ] टीकाने अंते स्पष्ट का छे के पोते एनी रचनामां जिनभटना अभिप्रायने अनुसर्या छे. आनो अर्थ ए थयो के जिनभटाचार्ये 'आवश्यक सूत्र' उपर एक टीका रची हती, जे अत्यारे उपलब्ध नथी. 'विशेषावश्यक भाष्य ' उपरनी कोट्याचार्यनो वृत्तिमा स्थळे स्थळे 'मूलटीका' अने आवश्यक मूलटीका 'माथी उद्धरणो आप्यां छे ते जिनभटाचार्यनी टीकामांथी होवां जोईए. १ विको ( भा. गा. ४९८ उपरनी वृत्ति), पृ. १८६ २ प्रच, ९-श्लो. ३, ३०, १८१ ३ समाप्ता चेय शिष्यहिता नाम आवश्यकवृत्तिटीका । वृत्तिः सिताम्बराचार्यजिनभटनिगदानुसारिणो विद्याधरकुलतिलकाचार्यजिनदत्त-: शिष्यधर्मतोयाकिनीमहत्तरासूनोररुपमातुराचार्यहरिभद्रस्य । आह, अंतभाग. - ४ आको, पृ. ६०९, ६७४, ६७५, ७९३, ८४६, ८५५ इत्यादि. जुओ पं. भगवानदासनी प्रस्तावना, पृ. १-४. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण 'आवश्यक सूत्र 'ना सामायिक अध्ययननी भद्रबाहुनी नियुक्ति उपर गाथाबद्ध ' विशेषावश्यक भाष्य' तथा बोजा अनेक प्रौढ ग्रन्थो रचनार आचार्य, ए महान भाष्यग्रन्थने अनुलक्षीने आचार्य मलयगिरिए जिनभद्रगणिने 'दुष्षमान्धकारनिमग्नजिनवचनप्रदीप' कह्या छे.' जेसलमेर भंडारनी एक प्राचीन ताडपत्रीय प्रतने आधारे आचार्य जिनविजयजीए 'विशेषावश्यक भाष्य 'नो रचनाकाळ शकाब्द ५३१ ई. स. ६०९ होवानुं निश्चितपणे पुरवार कयु छे.' जिनभद्रगणिए पोते 'विशेषावश्यक भाष्य' उपर एक टीका रची हती. ए अत्यारे उपलब्ध नथी, पण कोट्याचार्य तथा मलधारी हेमचन्द्रे पोतानां विवरणोमा एनो निर्देश कयों छे. पछीना समयमा थयेला आगमसाहित्यना अनेक टीकाकारोए जिनभद्रगणिना अभिप्रायो' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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