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'पुत्रमां वीरनिर्वाण पछी बीजी शताब्दीमां मळी हती. जैन आगमना मूल ग्रन्थो पण स्वाभाविक रोते ज मगधमां रचायेला छे. मुख्यत्वे आ कारणे आगमना मूल ग्रन्थोमां गुजरात विशे थोडा अछडता उल्लेखो मळे छे, अने ते पण मुख्यत्वे बावीसमा तीर्थकर नेमिनाथना जीवन अने यादवोना इतिहास साथै संबंध धरावे छे. प्राचीन गुर्जर देशमां रचायेली टीकाचूर्णिओमांथी ज आपणने विशेष माहिती प्राप्त थाय छे.
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वी आ पुस्तकमा संकलित थयेली सामग्री जेम प्राचीनतम मूल ग्रन्थोमाथी छे तेम १७ मा - १८ मा सैकामां रचायेली टीकाओमांथी पण छे. अमुक वस्तु जे रचनामांथी मळे छे ते रचना ( मात्र मूल आगमोना अपवादने बाजुए राखतां ) कया समयनी छे तेनी नोंध संदर्भसूचिमां करी छे, जेथी वाचकने कालानुक्रमनो ख्याल आवे. ज्यां चोकस साल नथी मळती, पण अनुमाने समय नक्की थई शके छे त्यां ए प्रकारनो उल्लेख कर्यो छे.
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जैन आगम साहित्यमा गुजरात. पण गुजरात एटले ? गुजरातनी सीमाओ तो समये समये बदलाती रही छे. वळी एक चोकस प्रदेशने आपणे अभ्यासविषय बनावीए तोपण तेने पूरी
ते समजवा माटे आजूबाजूना प्रदेशोनो पण परिचय आपणने होवो जोईए. एटले, आ पुस्तकमां, आजे आपणे जेने गुजरात ना मे ओळखीए छीए ते प्रदेशनी सीमा उपर ध्यान केन्द्रित करवानी साथे साथै, आसपासना प्रदेशोना उल्लेखोनो पण समावेश कर्यो छे.
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कामां सूचवी शकाय के गिरनारना, ई. स. क्षत्रप राजा रुद्रदामाना, शिलालेखमां जे प्रदेशो ते बधा ज प्रदेशोने आवरी लेवानो ख्याल राख्यो छे. टाळवा माटे प्रधानगौणविवेक जाळववो पड्यो छे. आजना गुजरातमां परिसीमित थता प्रदेशोने अपायुं छे तेटलं महत्त्व पडोशना ने दूरना
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१५० नां, गणावाया छे अलबत्त, लंबाण
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