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ताम्रलिप्ति ]
५ आमीराख्यमहादेशे तेराख्यनगरं परम् । तदा नीलमहानीलौ प्रयातौ विजिगीषया ॥
'करवंडचरिउ,' प्रस्तावना, पृ. ४१-४८.
तरङ्गवती कथा
पादलिताचार्यकृत एक धर्मकथा. जुओ पादलिप्ताचार्य
ताम्रलिप्ति
'बृहत् कथाकाश, ५६. ५२
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ताम्रलिप्तिने ' द्रोणमुख' कहेवामां आव्युं छे. जल अने स्थल एम बन्ने मार्गोए ज्यां जई शकाय ते द्रोणमुख. एना उदाहरण तरीके भरुकच्छ भने ताम्रलिप्तिनां नाम आपवामां आवे छे.' सिन्धु, ताम्रलिप्ति आदि प्रदेशोमां मच्छर पुष्कळ होय छे एवो उल्लेख ' सूत्रकृतांग सूत्र 'नी चूर्णिमां छे.
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ताम्रलिप्तिने साधारण रीते बंगाळनुं तामलुक गणवानो मत पुराविदोमां छे, पण गुजरातना स्तंभतीर्थ - खंभातने पण प्राचीन काळथी ताम्रलिप्ति तरीके ओळखवामां आवे छे एना मजबूत पुरावा छे, अने जैन आगमग्रन्थो उपरनी टीकाचूर्णिओ गुर्जर देशमां रचायेली होई एम बंगालना ताम्रलिप्ति करतां गुजरातना ज मोटा वेपारी मथक ताम्रलिप्ति ( खंभात )नो द्रोणमुख तरीके निर्देश होय एम मानवु वधारे सयुक्तिक छे.
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प्रभाचन्द्रसूरिना' प्रभावक चरित ' ( ई. स. १२७८ ) ना 'हेमाचार्यचरित' (श्लो. ३२-४१) मां ' स्तंभतीर्थ' अने 'ताम्रलिप्ति' ए बन्ने नामो पर्यायो तरीके वापरेला छे ए वस्तु पण अह नाँधवी जोईए.
जुओ सिन्धु
१ दोहिं गम्मति जलेण वि थलेण वि दोणमुहं जहा भरुयच्छ तामलित्ती एवमादि, आसूचू, पृ. २८२.
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