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________________ [ देवद्धिगणि समाश्रमण तमाम उपलब्ब आगमग्रन्थोने तेमना नेतृत्व नीचे एक चोकस पद्धति अनुसार एक साथे लिपिबद्ध करवामां आव्या ए पण जैन इतिहासमा एक घणा महत्त्वनो बनाव गणाय, । 'नंदिसूत्र 'ना प्रारंभमां देवर्धिगणिनी गुरुपरंपरा आपवामां आत्री छे. ए प्रमाणे तेओ महावीरथी बत्रीसमा युगप्रधान आचार्य छे. ए पट्टावलि नीचे प्रमाणे छे : महावीर पछी आर्य सुधर्मा, जंबुस्वामी, प्रभवस्वामी, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, महागिरि, सुहस्ती, बलिस्सह, स्वाति, श्यामार्य, शांडिल्य, समुद्र, मंगू, आर्य धर्म, भद्रगुप्त, वज्र, रक्षित, नंदिल, नागहस्ती, रेवतिनक्षत्र, ब्रह्मद्वीपक सिंह, स्कन्दिलाचार्य, हिमवंत, नागार्जुन, गोविन्द, भूतदिन्न, लौहित्य, दूष्यगणि, देवर्धिगणि.' 'कल्पसूत्र' अंतर्गत स्थविरावली अनुसार देवर्किगणि महावीरथी ३२मा नहि, पण ३४मा पुरुष हता.' त्यां देवर्षिगणिनी गुरुपरंपरा नीचे मुजब आपेली छे-महावीर पछी सुधर्मा, जंबु, प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतविजय-भद्रबाहु, स्थूलभद्र, सुहस्ती, सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध, इन्द्रदिन्न, दिन्न, सिंहगिरि, वज्र, रथ, पुष्यगिरि, फल्गुमित्र, धनगिरि, शिवभूति, भद्र, नक्षत्र, रक्ष, नाग, जेहिल, विष्णु, कालक, संपलित-भद्र, वृद्ध, संघपालित, हस्ती, धर्म, सिंह, धर्म, शांडिल्य, देवर्धि. . जुओ नागार्जुन, भट्टि आचार्य, मथुरा, वलभी १ नंम, पृ, ६५. २ कसं, पृ. ११८-१९; ककि, पृ. १२९--३२; कसू, ३७५-७८% कको, पृ. १५६; की, ११३-१५; इत्यादि. ३ नसू, स्थविरावली, गा. १-४१. ४ विविध पट्टावलीओमा प्राप्त देवधिगणिनी गुरुपरंपरानी तुलनात्मक चर्चा माटे जुओ मुनि कल्याणविजयजीकृत : वीरनिर्वाण संवत् ओर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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