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________________ अट्टण ] [ ७ पाम्यो, तथा अड्डण सत्कार पामीने उज्जयिनी गयो ( आवश्यकसूत्र उपरनी चूर्णिमां अह सुधीनुं ज कथानक आप्युं छे. ) उज्जयिनी गया पछी एणे मल्लयुद्धनो त्याग करी दीधो. वळी वृद्ध थई गयो होवाथी संबंधीओ एनुं अपमान करवा लाग्या. आथी संबंधीओने समाचार आप्या विना ज ए कौशांबी चाल्यो गयो. त्यां एक वर्ष आराम लईने रसायणो खाधां तथा बलिष्ठ थयो. पछी एक बार एणे कौशांबीना राजाना मल निरंगणनो मल्लयुद्धमां पराजय करीने एने मारी नाख्यो. पोतानो मल्ल मरण पाम्यो एथी राजाए अट्टणनी प्रशंसा करी नहि, अने तेथी सभाजनाए पण न करी. आथी अट्टणे राजानी जाण माटेक के - साहह वण सणाणं, साहह भो सउणिगा सउणिगाणं । हितो णिरंगणो अट्टणेण णिक्खित्तसत्थेणं ॥ [ अर्थात् हे वन ! पक्षीओने कहे, अने हे पक्षीओ ! बीजां पक्षीओने कहो के जेणे शस्त्रो छोडी दीघां हृतां तेवा अट्टणे निरंगणने मारी नाख्यो छे. ] आ उक्ति उपरथी राजाए एने अट्टण तरीके ओळख्यो अने एनो सत्कार कर्यो, तथा जीवन पर्यंत चाले तेटलुं द्रव्य आप्युं. द्रव्यलोभथी संबंधोओ पण अट्टण पासे आव्यां. परन्तु 'आ लोको फरी पण मारी पराभव करशे' ए समजीने तथा पोतानी जातने जराग्रस्त जाणीने ' सचेष्ट कुं त्यांसुधी ज धर्म थई शकशे ' एवी समजपूर्वक अट्टणे दीक्षा लोधी. आ कथा, जेमां वास्तविक सामाजिक स्थिति लोकवार्ता रूपे निरूपण पामी होय एवो संभव छे ते प्राचीन भारतमां मल्लविद्याना इतिहास माटे घणी अगत्यनी छे, केम के हरिवंश भागवतादिमां कृष्णबलरामना तथा कंसना चरित्रप्रसंगमां तथा महाभारतादिमां दुर्योधन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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