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[ सुराष्ट्र
एक संनिवेशमां वे दरिद्र भाईओ हता; तेओए सुराष्ट्रमां जईने एक हजार रूपक उपार्जित कर्या हता एवं एक प्राचीन कथानक छे. ते उपरथी समुद्री वटायेला सुराष्ट्रमां बहोळो वेपार चालतो हतो एवं अनुमान स्वाभाविक रीते ज थाय छे.
'वसुदेव - हिंडी' ( ई. स. ना पांचमा सैका आसपास ) ना 'गन्धर्वदत्ता लंभक'मांथी सुराष्ट्रनी वेपारी जाहोजलालीनुं समर्थन करतो पुरावो प्राप्त थाय छे. एमां चारुदत्त नामे वणिकपुत्र चीनस्थान, सुवर्णभूमि, कमलपुर, यवद्वीप, सिंहल तथा पश्चिमे बर्बर अने यवन देशनो जलप्रवास खेडीने पाछे। फरतां सुराष्ट्रना किनारे प्रवास करतो हतो अने किनारो दृष्टिमर्यादामां हतो व्यारे एनुं वहाण भांगी गयुं अने सात रात्रिओ एक पाटियाने आधारे समुद्रमां गाळ्या पछी 'उंबरावतीवेला' ए नामथी ओळखता तीरप्रदेश उपर ते फेंकाई गयो हतो ( 'वसुदेवहिंडी,' मूळ पृ. १४६; भाषान्तर, पृ. १८९).
कुणालना पुत्र संप्रति उज्जयिनी मां रहीने सुरा विषय स्वाधीन कर्यो हतो." सुरा ए नेमिनाथनी जन्मभूमि अने विहारभूमि होई त्यां जैन धर्मनुं जोर होय अने जैन साधुओ ए प्रदेशमां विचरता होय ए स्वाभाविक छे, पण संप्रतिनुं आधिपत्य त्यां स्थपाया पछी जैन धर्मनी प्रवृत्तिने वेग मळ्यो हशे 'आ अनुमानने समर्थन आपतां प्रमाणरूप कथानको आगमसाहित्यमां मळे छेः सुराष्ट्र विषयमां बे आचार्यो हता. एक आचार्य कायम त्यां ज रहेता हता, तेओ आगंतुक आचार्यने सुगमदुर्गम मार्गो तथा सुखविहार करी शकाय एवां क्षेत्रो वगेरे बधुं समजावता हता. जुदा जुदा प्रदेशोना वतनी साधुओना देशराग विशे आम कयुं छे: एक साधु सुराष्ट्रनी प्रशंसा करे छे के ' सुरराष्ट्र विषय रमणीय छे. ' बीजो साधु बोल्यो के 'तुं कूपमंडूक छे. तने शीं खबर छे ! सारो देश तो दक्षिणापथ छे.' आम देशरागथी चालता उत्तर- प्रत्युत्तरोमांथी कलह उत्पन्न थाय छे.'
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