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________________ महाराष्ट्र ] [ १३५ वामां आवे छे. महाराष्टमां प्रसिद्ध कोल्लुकचक्रपरंपरा - शेरडी पीलवाना कोलनां चकोनो पण निर्देश छे." पालंक ( गुज. पालख ) नुं शाक महाराष्ट्र अने गोल्ल देशमां प्रसिद्ध छे.' महाराष्टमां नग्न साधुनुं चिह्न वधीने एमां कडी नाखवानो रिवाज हतो. महाराष्ट्रमां कल्पपाल - कलालने बहिष्कृत गणवामां आवतो नहोतो; एनी साधे बीजाओ भोजन लई शकता. " नीलकंबल आदि ऊननां वस्त्रो महाराष्ट्र देशमां घणां मोंघां होय छे, छतां शियाळामां साधुओए ए धारण करवां, केम के ए. सिवाय शीतनुं निवारण थतुं नथी." महाराष्ट्रमां भादरवा सुद पडवाना दिवसे 'श्रमणपूजा' नामे उत्सव थतो. एमां लोको साधुओने वहोरावीने अट्टमना उपवासनुं पारणं करता. कालकाचार्ये प्रतिष्ठानमां पर्युषण कर्यु व्यारथी आ उत्सवनो प्रारंभ थयो हतो. १३ १३ १४ ११६ महाराष्ट्रनी भाषाने लगता पण केटलाक उल्लेखो छे. मालवमहाराष्ट्रादि देशप्रसिद्ध विविध भाषाओ बोलवाथी सांभळनारने हास्य उत्पन्न थाय छे." महाराष्ट्रनी भाषामां स्त्रीने 'माउग्गाम, " रूनी पूणीने 'पेलु तथा पूणी बनाववा माटेनी काष्ठशलाकाने 'पेलु - करण" कहे छे. ' दशवैकालिक सूत्र'नी चूर्णि अनुसार, महाराष्ट्रमां संबोधनार्थे ( अण्ण' शब्द चपराय छे; ए बतावे छे के अर्वाचीन मराठी शब्द 'अण्णा'नो प्रयोग ओछामां ओलुं आठमा सैका जेटला प्राचीन काळमां जाय छे. १८ ' चोद्दिति ' अथवा 'कुणिय' जेवा शब्दो बोलनार महाराष्ट्र प्रदेशमा हास्यपात्र थाय छे, " एम 'निशीथचूर्णि' लखे छे. एनो अर्थ एथयो के 'निशीथ चूर्णि' ज्यां रचाई ए प्राचीन गुर्जर देशमां लगभग आठमा सैका सुधी आशब्दो अश्लील गणता नहोता. १. जुओ सम्प्रति. २ प्रन्या ( अधर्मद्वार ), पृ. १४. तेमांनुं अवतरण - xxx इमे य बहवे बहवे मिलक्खू जाती, के ते? सक- जवण - सबर-बर- माय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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