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[ गजाय पद भारे समृद्धिपूर्वक त्यां आवीने तेमने वंदन कर्या हता. ए समये दशार्णकूट उपर औरावतनां पगलां पडवाथी ते पर्वत गजाप्रपद नामथी ओळखायो.' आर्य महागिरि विदिशामां जिनप्रतिमाने वंदन करीने गजाग्रपद तीर्थनी यात्रा माटे एलकच्छ ( दशार्णपुर) गया हता.'
जुओ एलकच्छ, दशाणपुर १ आम, पृ. ४६८.
२ आचू , उत्तर भाग, पृ. १५६-५७. गन्धहस्ती
एक प्राचीन आचार्य. 'आचारांग सूत्र' ना 'शस्त्रपरिज्ञा' अध्ययन उपरना तेमना विवरणनो उल्लेख ए सूत्र उपरनी शीलाचार्यनी टीकामां छे.' ' तत्त्वार्थसूत्र 'ना टीकाकार तरीके पण अन्यत्र तेमनो उल्लेख छे.* 'जीतकल्पभाष्य' मां गंधहस्तीनो श्रुतधर तरीके निर्देश छे. 'उत्तराध्ययन सूत्र' उपरनी शान्तिसूरिनी वृत्तिमां तथा ' आवश्यक' उपरना मलधारी हेमचन्द्रना टिप्पणमां पण गंधहस्तीनो मत टांकेलो छे. ___गंधहस्ती कोण ए विशे केटलोक मतभेद छे. प्रसिद्ध स्तुतिकार स्वामी समंतभद्र ए गंधहस्ती अने तेमणे ' तत्त्वार्थसूत्र' उपर रचेल भाष्य ए ज गंधहरितमहाभाष्य एबी मान्यता दिगंबर संप्रदायमां सामान्य रीते छे, ज्यारे वृद्धवादिशिष्य सिद्धसेन दिवाकर ए गंधहस्ती अने ' तत्त्वार्थसूत्र ' उपर तेमणे व्याख्या लखी हती एवो मान्यता सामान्य रीते श्वेतांबर संप्रदायमा छे." पण पं. सुखलालजी अने पं. बेचरदासे ' सन्मतितर्क 'नी तेमनी प्रस्तावनामां सप्रमाण बताव्युं छे के गंधहस्तो ए सिंहसूरिना प्रशिष्य अने भास्वामीना शिष्य, 'तत्त्वार्थभाष्य 'नी वृत्तिना कर्ता सिद्धसेन छे. आ वृत्तिमां सिद्धसेने अकलंकना 'सिद्धिविनिश्चय 'मांथी अवतरणो आप्यां छे, एटले तेओ ईसवी सनना सातमा सैकाथी तो अर्वाचीन छे.
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