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१८ अलबेली आम्रपाली
कुछ समय तक पक्ष और विपक्ष में प्रश्नोत्तर चलते रहे । आम्रपाली भी सभा के समक्ष उपस्थित हुई । उसकी वाणी से भी अनेक सदस्य प्रभावित हुए पर गणसभा की परम्परा को अक्षुण्ण रखने की बात पर सबने बल दिया ।
उस दिन की सभा विसर्जित हो गई ।
चार दिन तक फिर सभा एकत्रित होती रही ।
अन्त में...
आम्रपाली ने पांचवें दिन सभा में उपस्थित होकर कहा--" सदस्यगण ! मैं गणतन्त्र का सम्मान करती हूं और उसे अपने पिता तुल्य समझती हूं। उसके निर्णय को मैं अमान्य कर उसकी अवहेलना करना नहीं चाहती। मैं जनपदकल्याणी के पद को स्वीकार करती हूं । परन्तु मेरी तीन शर्तें हैं
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१. जिस दिन मुझे जनपदकल्याणी का पद गौरव प्राप्त हो उस दिन मेरा अभिषेक पवित्र पुष्करणी में हो ।
२. जो यहां का सप्तभीम प्रासाद है, वह मेरे निवास के लिए मुझे मिले । ३. जनपदकल्याणी के भवन में कोई भी अतिथि आकर रहे, उसकी तलाशी न ली जाए। उसकी गुप्तचरी न की जाए । उस पर किसी प्रकार का स्वतन्त्र अधिकार न किया जाए।
इन शर्तों को सुनते ही सभासद स्तब्ध रह गए। मानो उन पर बिजली कड़क कर गिरी हो, ऐसा लगने लगा ।
क्योंकि.
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एक सदस्य ने कहा- "आम्रपाली ने जो शर्तें प्रस्तुत की हैं वे अपनी परंपरा का अपमान करने वाली हैं। मंगल पुष्करणी एक असाधारण और पवित्र वस्तु है । इसमें केवल गणसभा के मान्य प्रतिनिधि का ही अभिषेक हो सकता है और आज तक अपनी परंपरा का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि आज तक किसी भी कन्या या स्त्री का उसमें अभिषेक नहीं किया गया । इसलिए आम्रपाली की पहली शर्त मानने योग्य नहीं है । "
" दूसरी शर्त भी बहुत विचित्र है । सप्तभौम प्रासाद गणतन्त्र की निजी सम्पत्ति है। महाराज चेटक ने इसका निर्माण करवाया था । यह किसी को उपयोग के लिए नहीं दिया जा सकता ।"
आम्रपाली ने सभा के समक्ष कहा - " अभिषेक के विषय में सभासद ने जो शंका व्यक्त की है, वह अस्थानीय है । जनपदकल्याणी का गौरव गणतन्त्र का गौरव है । अभिषेक से पुष्करणी का जलविषाक्त नहीं बनेगा । अभिषेक का अधिकार केवल पुरुषों को ही क्यों ? गणतन्त्र में स्त्री भी समान अधिकार रखती है । मेरी यह शर्त सीधी सादी है और इसमें व्यक्तिगत रूप से आम्रपाली का नहीं नगर-नारी का बड़प्पन है ।"