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म्लेच्छकन्याओसे विवाह इससे साफ प्रगट है कि चक्रवर्तीके लिए म्लेच्छोकी कन्याएँ ग्रहण की गई और यह भी प्रगट है कि म्लेच्छखडोके म्लेच्छ, धर्म-कर्मको छोडकर, अन्य समस्त आचार-व्यवहारोमे आर्यखडके मनुष्योके ही समान हैं। धर्म-कर्मसे विमुख होनेके कारण उनकी म्लेच्छ सज्ञा है।
श्रीजिनसेनाचार्यकृत 'हरिवंशपुराण' मे भी, जिसकी कि भाषाटीका प० दौलतरामजीने की है, म्लेच्छराजाओका, दिग्विजयके समय, अपनी कन्याएँ भरत चक्रवर्तीको देने का विधान पाया जाता है । जैसा कि भाषाटीकाके निम्न वाक्योसे प्रगट है --
"चक्रवर्ती उत्तरमे गया। वहाँ हजारो राजा म्लेच्छ सो अपूर्व कटक आया जान युद्धको उद्यमी भये । तब अयोध्य नाम सेनापति दडरत्नका धारक उसने युद्ध कर वे भगाये "
"भयसे वे राजा म्लेच्छ भागकर उनका कुल देवता महाभयकर मेघमुख नामा नागकुमार उनके शरणे गये "(परस्पर युद्ध हुआ अन्तको) "वे म्लेच्छखडके राजा कन्यादिक रत्न भेटकर चक्रवर्तीके सेवक भये ।"
(३) उक्त आदिपुराणके पर्व ३७ मे, जहाँ भरत चक्रवर्तीकी विभूतिका वर्णन दिया है वहाँ लिखा है कि म्लेच्छ राजादिकोकी दी हुई जिन कन्याओसे चक्रवर्तीका विवाह हुआ, सम्राटकी उन प्यारी स्त्रियोंकी सख्या मुकुटबद्ध राजाओकी सख्या-प्रमाण थी। इनके सिवाय जाति-कुल-सम्पन्ना,आदि स्त्रियोकी सख्या अलग दी है। यथा ---
"कुलजात्यभिसम्पन्ना देव्यस्तावत्प्रमा स्मृताः । रूपलावण्यकान्तीना या शुद्धाऽऽकरभूमयः ।। ३४ ॥ म्लेच्छराजादिभिर्दत्तास्तावन्त्यो नृपवल्लभा.। आसर. सकथा. क्षोणी यकाभिरवतारिताः ॥ ३५ ।।