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युगवीर-निवन्धावली जाते हैं और जो लोग म्लेच्छखडोमे उत्पन्न हुए हैं अथवा अन्तरद्वीपोमे उत्पन्न हुए हैं उन सबको म्लेच्छ समझना चाहिये । इससे प्रगट है कि आर्यखडमे जो मनुष्य उत्पन्न होते हैं वे तो आर्य और म्लेच्छ दोनो प्रकारके होते है, परन्तु म्लेच्छखडोमे एक ही प्रकारके मनुष्य अर्थात् म्लेच्छ ही उत्पन्न होते हैं।।
भावार्थ--म्लेच्छोके मूल भेद तीन हैं --आर्यखडोद्भव, म्लेच्छखडोद्भव, अन्तरद्वीपज । और आर्योका मूलभेद एक आर्यखडोद्भव ही है । जब यह बात है तव म्लेच्छखडोमे आर्यराजाओका होना और उनकी कन्याओसे चक्रवर्तीका विवाह करना कैसे बन सकता है ? बल्कि यही बात बन सकती है कि म्लेच्छोकी कन्याओसे ही चक्रवत्तियोने विवाह किया है।
(२) भगवज्जिनसेनाचार्य 'आदिपुराण' मे श्री भरत महाराज आद्य चक्रवर्तीकी दिग्विजयका वर्णन करते हुए पर्व ३१ मे लिखते हैं---
"इत्युपायैरुपायजः साधयम्लेच्छभूभुज.। तेभ्यः कन्यादिरत्नानि प्रभो ग्यान्युपाहरत् ।। १४१ ॥" "धर्मकर्मवहिर्भूता इत्यमी म्लेच्छका मताः।
अन्यथाऽन्यैः समाचारैरार्यावर्तेन ते समाः ।। १४२ ॥" अर्थात्--भरत चक्रवर्तीके प्रधान सेनापतिने (ऊपरके शास्त्रमे वर्णन किये हुए) अनेक उपायोसे म्लेच्छराजाओको वशमे करके उन म्लेच्छराजाओसे अपने सम्राटके लिये अनेक कन्याएँ तथा अन्य रत्न ग्रहण किये ॥ १४१ ॥
ये म्लेच्छखडके लोग धर्म-कर्मसे बहिर्भूत हैं इसलिये म्लेच्छ कहलाते हैं। नही तो, और समस्त आचार-व्यवहारोमे ये सव लोग आर्यावर्त अर्थात् आर्यखडके ही समान हैं ॥ १४२ ॥