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उसकी सारी दृष्टि से तथा उसके कुछ पुद्गल जैसे विशिष्ट पारिभाषिक शब्दों से इसी बात की पुष्टि होती है।" गीता के चौथे अध्याय के वर्णन से ऋषभदेव की अत्यन्त प्राचीनता पर प्रकाश पड़ता है । महाराज कृष्ण कहते हैं-हे अर्जुन ! इस योग का उपदेश सूर्य से मनु को प्राप्त हुआ था। मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को इसका प्रतिपादन किया था । इक्ष्वाकुवंश के आदिपुरुष भगवान ऋषभदेव हुए हैं। स्वामी समंतभद्र ने स्वयंभू स्तोत्र में ऋषभदेव को “इक्ष्वाकुकुलादि
आत्मवान्" इक्ष्वाकुवंशमें प्रथम प्रात्मज्ञ महापुरुष कहा है। महापुराण में जिनसेनाचार्य ने कहा है--
पाकनाच्च तदेक्षणां रस-संग्रहणे नृणाम् । इक्ष्वाकुरित्यभूदेवो जगतामभिसम्मतः ॥१६-२६४॥
उस समय भगवान ने लोगों को इक्षुरस के संग्रह का उपदेश दिया था, इससे जगत् उनको इक्ष्वाकु कहने लगा था।
भगवान राम भी इक्ष्वाकुवंशी हुए हैं । महाभारत में राम को "इक्ष्वाकुनंदनः". (पृ. १७६६, गीता प्रेस प्रति) कहा है ।
इक्ष्वाकु राजा के पश्चात् अन्य राजाओं को भी योग का ज्ञान हुआ किन्तु "स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप ।।४-२ गीता ।। हे अर्जुन ! वह योग बहुत समय से इस लोक में नष्ट हो गया ।
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तःपुरातनः ॥४-३॥
अब मैंने उसी पुरातन योग का तेरे लिए प्रतिपादन किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि श्री कृष्ण की गीता के बहुत पूर्व योग का उपदेश इक्ष्वाकुवंशी राजा को मिला था। इससे उस वंश के आदि पुरुष की प्राचीनता का सहज ही विश्वास हो सकता है। अतः ऋषभदेव भारतीय संस्कृति के अत्यन्त प्राचीन आदरणीय व्यक्ति प्रमाणित होते हैं।
__ कुछ बातों में समानता देखकर दोनों विचारधाराओं को सर्वथा एक अथवा कुछ भिन्नता देख उनमें भयंकर विरोध की कल्पना गम्भीर विचार की दृष्टि में अनुचित है। सद्भावना के जागरण-निमित्त संस्कृतियों के मध्य ऐक्य के बीजों का अन्वेषण हितकारी है; जैसे जैनधर्म में छने पानी का उपयोग करना आवश्यक बताया गया है। वैदिक शास्त्र भागवत अध्याय १८ में लिखा है कि वानप्रस्थ आश्रमवाला व्यक्ति छना जल पीता है। कहा भी है :
दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं, वस्त्रपूतं पिबेज्जलम् । सत्यपूतां वदेद्वाचं, मनःपूतं समाचरेत् ॥१५॥
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