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देवको ही चूका कहनेका जब दुःसाहस किया, तब भला ये क्यों कमी रक्खें ? साथ साथ, एक और बातभी समझ लीजिये ।
भीखुचरित्र के लेखकने, भीखमजीके जन्मादि प्रसंगों को तीर्थकरके कल्याणक की तरह कल्याणक लिखे हैं । जैसे जन्म के प्रसंग में लिखा है: ---
'तीखी तिथि तेरस सुणीरे लाल, जन्मकल्याणिक थायरे' | सो० ॥ ५ ॥
ऐसे और प्रसंगों में भी । अब यहाँ विचारनेकी बात है किकल्याणक होते हैं किसके ? | कल्याणक होते हैं तीर्थंकरोंके | भीखमजी जैसे अल्पज्ञों के नहीं । और जिसके कल्याणक होते हैं, उसको तो गर्भमेंसे ही तीन ज्ञान (मति श्रुत-अवधि) होते हैं । क्या भीखमजी, जब उनकी माताकी कुक्षिमें आए, तबसे उनके तीन ज्ञान थे ? । और यदि उसको तीनज्ञान होते, तो बिचारा ढूंढकसाधु होता ही क्यों ? एवं पीछेसे वहाँ से भागकर एक नया ढाँचा खडा करता ही क्यों ? |
और भी एक बात है । जिनके कल्याणक होते हैं, उनके ( तीर्थंकरों के ) जन्मसे ही ये चार अतिशय होते हैं:
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तेषां च देहोऽद्भुतरूपगन्धो निरामयः स्वेदमलोज्झितश्च । श्वासोऽञ्जगन्धो रुधिरामिषां तु गोक्षीरधाराघवलं ह्यविस्रम् ।। ५६ ।।
आहारनीहारविधिस्त्वदृश्य
अत्वार एतेऽतिशयाः सहोत्थाः । ' ( अभिधानचिन्तामणी )