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माने हुए स्थूलस्थूल सिद्धान्तोंका, जैनसूत्रों और युक्तियों के साथ खंडन आगे जाकर किया जायगा । लेकिन इसके पहिले एक और बात कह देना समुचित होगा |
नीतिकारों का यह कथन है कि- पुरुषविश्वासे वचनविश्वास: ' सिवाय पुरुषविश्वास होनेके, वचनका विश्वास नहीं हो सकता । अतएव पहिले इस तेरापंथ-मतके उत्पादक भीखुनजी के जीवनचरित्रका अवलोकन करें, कि जिससे पाठकों को यह तो विदित हो जाय कि इस पंथ के उत्पादककी ज्ञानपूंजी कितनी थी ? ।
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* भीखम चरित्रका अवलोकन
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भीखम (भीखुन) चरित्र, तेरापंथियों के छपवाए हुए कई पुस्तकोंमें छपा है । इस परसे मालूम होता है कि- इसका जन्म मारवाडके कंटालिया नामक किसी ग्राम में, सं १७८३ में हुआ था । इसके पिताका नाम बलुजी था, 'और माताका नाम दीपादे । सं. १८०८ में इसने ढूंढक साधु रुघनाथजी के पास दीक्षा ली । सारे चरित्रको हम पढ गये, परन्तु कहीं भी यह नहीं देखा गया कि इन्होंने संस्कृत - प्राकृत या भाषाका भी कुछ अभ्यास किया हो । इतना ही नहीं, इसकी बनाई हुई टूटी-फूटी भाषाकी कविताओं के सिवाय आज एक भी छोटी बडी उपयोगी पुस्तक प्राप्त नहीं होती । इससे क्या समझना चाहिये ? | जैसे आजकल मारवाड -- मेवाड में.
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१ सं. १९५७ में शाह खेतसी जीवराजने तेरापंथी श्रावकों का सामायकपडिक्कमणा अर्थ सहित ' नामक जो पुस्तक निर्णयसागर प्रेस में छपवाई है, उससे यह अवलोकन किया गया है । इस चरित्रको रिख वेणीदासने बगडी में, वि. सं. १८६० फाल्गुन वदि १३ गुरुवार के दिन बनाया था ।
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