Book Title: Terapanthi Hitshiksha
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 13
________________ इत्यादि जैनधर्मके सिद्धान्तोंसे बिलकुल विपरीत सिद्धान्तोंको मानने वाले यदि 'जैनी' होने का दावा करते हों, तो उनका यह वैसा ही दावा है, जैसे कि - एक कसाई, ब्राह्मण होनेका दावा करे | 1 तेरापंथी, जैनी नहीं हैं, इसमें एक और भी प्रमाण है । जैनोंके देव, चौवीस तीर्थंकर हैं, तेरापंथियोंके देव, उस पंथके उत्पादक भीखम हैं | जैनोंके गुरु, पंचमहाव्रतको पालने वाले, कंचन-कामनीके सर्वथा त्यागी, उष्गजलको पीनेवाले, निर्दोष आहारको लेनेवाले और महावीरस्वानीके तीर्थ में गुरुपरंपरासं चले आनेवाले साधु- मुनिराज हैं । तेरापंथियों के गुरु, साध्वियाँश्राविकाओंको रातके दस २ बजे तक पासमें ही बैठा रखनेवाले, एक एक दिवसके अंतरसे नियत किये हुए घरोंमेंसे मरजी मूजब माल उठानेवाले, साध्वियों के पास आहारपानी मंगवानेवाले, कच्चे पानीको पीनेवाले, ( एक घडे पानी में जरासी राख डाल दी, इससे पक्का नहीं कहा जा सकता, और ऐसे राखके पानी के पीनेका अधिकार भी नहीं है, इसलिये हम उसको कच्चा पानी ही कहते हैं मुँह पर दिनभर मुहपत्ती बांध रखने वाले, तेरापंथी साधु ही हैं । जैनोंका धर्म, महावीरस्वामीका प्ररूपित है, और तेरापंथियोंका धर्म, भीखमका उत्पादित है । अब बतावें पाठक, तेरापंथियोंको जैनी कहना, कितनी भारी भूल है । ऊपर कहे हुए संसार - व्यवहारको छेदनकरने वाले, हृदयको निर्दय बनानेवाले बहुत से सिद्धान्तों का नामोल्लेख ' तेरापंथ - मतसमीक्षा' में किया गया है । अब इस पुस्तकमें उनके

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