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॥ अर्हम् ॥
ॐ
परमगुरुश्रीविजयधर्मसूरिभ्यो नमः ।
तेरापंथी - हितशिक्षा ।
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शास्त्रकारोंका यह कथन सर्वथा सत्य ही है कि - 'रागदृष्टि, मनुष्य में रहे हुए हजारों दोषोंमेंसे एकको भी नहीं देख सकती । ' लेकिन बुद्धिमान लोग ऐस दृष्टिरागियोंके आचरणोंपर बडी हैंसी किया करते हैं । जिस धर्ममें, जिस मजहब में, जिस पंथमें अथवा यों कहिये कि जिस समाज में शास्त्रविरुद्ध और व्यवहारविरुद्ध आचरण हो रहे हों, संसारके समस्त सभ्यमनुष्य जिसके प्रति घृणा दिखाते हों, जिस पंथके मन्तव्यों को सुनते ही लोग छीं छीं करते हों, और साथ ही साथ जिस पंथके उपदेशक ( साधु ) के हृदमें दयाकी अंश में भी मात्रा न रही हो, उस पंथको - मजहबको मोक्षमें ले जानेवाला, समझनेवाले बुद्धिमानों (!) की बुद्धिका क्या परिचय कराया जाय ? । संसारमें हम जितने धर्म या समा1 जोंको देखते हैं, उनमें से किसी धर्म या समाजमें यह सिद्धान्त नहीं प्रतिपादित किया गया है कि ' जीवको बचाने में पाप लगता है ।' यदि इस सिद्धान्तवाला संसार में कोई मत है तो वह ' तेरापंथ '