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४३१ तीर्थकरके आशय से केवलज्ञान और परमार्थसम्यक्त्व, बीजरुचिसम्यक्त्व, मार्गानुसारी जीव, 'आत्मत्व' यही ध्वनि ४३२ आत्मस्थ होनेके लिये ज्ञानीकी भक्ति, स्वरूप विस्मरण विचारणीय
४३३ हुडाअवसर्पिणी, मुमुक्षुता, सरलता आदि साधन परम दुर्लभ, तीर्थकरवाणी सत्य करनेके लिये ऐसा उदय
४३४ यहाँ उपाधियोग
४३५ चितारहित परिणामसे उदयका वेदन ४३६ 'समता, रमता, ऊरघता ।' तीर्थकर, उनके वचन, मार्गबोध और उद्देशवचनको
नमस्कार
४३७ कल्याण-प्राप्तिकी दुर्लभता, जीव-समुदायकी भ्रातिके दो कारणोका एकत्र अभिप्राय, असत्सग आदि दूर करनेका उपाय, आत्मत्वको जाननेके लिये तीथंकरादिका दुष्कर पुरुषार्थ
४३८ 'समता, रमता, ऊरघता
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इस दोहे में बताये गये जीवके लक्षणोका विवेचन
४३९ वर्तमान अवस्था उपाधिरहित होनेके लिये अत्यत योग्य
४४० कल्याणके प्रतिवधक कारण, उनमें उदासीनता
४४१ सत्सग योगकी इच्छा करना और अपने दोष देखना योग्य
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४४२ 'घार तरवारनी सोहली, " मार्गकी ऐसी दुष्करता किसलिये ?
४४३ तीर्थंकर या तीर्थंकर जैसा पुरुष ४४४ जलको सूर्यादिके ताप-योग जैसा प्रवृत्तियोग हमें हैं ।
४४५ विशेषरूपसे सत्सग करना ४४६ आकर्षक ससारमें अवकाश लेनेकी सर्वथा ना, चिता उपद्रव कोई शत्रु नही हैं। ४४७ अनुकूल प्रसगोमें ससार त्याग दुष्कर, प्रतिकूल प्रसंग आत्मसाघक ४४८ 'माहण' 'श्रमण' 'भिक्षु' और 'निर्ग्रन्थकी' वीतराग अवस्थाएँ, 'आत्मवादप्राप्त' का अर्थ ३७८
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परम साधन, ज्ञानी पुरुषकी प्रवृत्ति, अनादिके तीन दोष, उन्हें दूर करनेके उपाय, कल्याणका उपाय, हमारे समागमके अतरायमे निराश व प्रमादी न हो, स्वाध्याय, निवृत्ति आदिमें प्रयत्नशील रहें
४५० जीव । तू किसलिये शोक करता है ? मार्गानुसारी और अज्ञानयोगी पुरुषोमें भी सिद्धियोग, सिद्धियोग और गुणस्थान, ज्ञानीसे सिद्धियोग स्वाभाविक परिणामी, सिद्धि योग साधनका हमने कभी विचार नहीं किया, राम, पाडव और गजसुकुमारके दुखकी तुलनामें आपका और हमारा दुख कुछ भी नही
४५१ सत्सगके इच्छावान जीवोकी उपकारक देखभाल
४४९ सत्सग
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४५२ दु.ख कल्पित है ४५३ दुषमकालमें आत्मप्रत्ययी पुरुषके बचनेका एक मात्र उपाय - निरंतर सत्सग, उपाधि परिणामसे आत्मप्रत्ययी, मूर्खकी भाँति उदय-व्यवहारका सेवन किया करते हैं । ३८१ ४५४ ज्ञानीको देखने सुननेवाला पुरुष न तो ससारसे प्रीति और न स्त्रीमें राग कर सकता है, ज्ञानीपुरुषका मार्गानुसारीको बोध, ध्यानमें रखने योग्य बातें ३८३ ४५५ अनुकूलता-प्रतिकूलताके कारणमे अविषमता ३८३ ४५६ प्राणी आशासे जीते हैं, आत्मज्ञानी आत्मस्वरूपसे जीता है, आशामें समाधि किस तरह ?
४५७ रखा कुछ रहता नही, छोडा कुछ जाता नही
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४५८ विचारस्थिति
४५९ श्री कृष्णादिकी क्रिया उदासीन-सी, भाव अप्रतिबन्धके प्रमाणमें सम्यग्दृष्टिपन, अनन्तानुवधी कषाय और सम्यक्त्व, परमार्च मार्गका लक्षण, परमार्थ- बडका बीज ३८४ ४६० शारीरिक वेदना
सम्यक् प्रकारसे सहन
करने योग्य, देहमें अपारिणामिक ममता,