Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२) छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ७. पमादस्संत-भावो ? कसायेसु, कसायवदिरित्तपमादाणुवलंभादो । देवाउवबंधस्स वि कसाओ चेव कारणं, पमादहेदुकसायस्स उदयाभावेण अप्पमत्तो होदण मंदकसाउदएण परिणदस्स देवाउअबंधविणासुवलंभा। णिदा-पयलाणं पि बंधस्स कसाउदओ चेव कारणं, अपुव्वकरणद्धाए पढमसत्तमभाए' संजलणाणं तप्पाओग्गतिव्वोदए एदासिं बंधुवलंभादो । देवगइ-पंचिंदियजादि-वेउबिय-आहार-तेजा-कम्मइयसरीर-समचउरससरीरसंठाण-वेउन्वियआहारसरीरअंगोवंग-वण्ण-गंध-रस-फास-देवगइपाओग्गाणुपुव्वी-अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघाद-उस्सास-पसत्थविहायगदि-तस-बादर-पजत्त-पत्तेयसरीर-थिर-सुह-सुभग-सुस्सर-आदेज.. णिमिण-तित्थयराणं पि बंधस्स कसाउदओ चेव कारणं, अपुव्वकरणद्धाए छसत्तभागचरिमसमए मंदयरकसाउदएण सह बंधुवलंभादो । हस्स-रदि-भय-दुगुंछाणं बंधस्स अधापवत्तापुवकरणणिबंधणकसाउदओ कारणं, तत्थेव एदासि बंधुवलंभादो । चदुसंजलण-पुरिसवेदाणं बंधस्स बादरकसाओ कारणं, सुहुमकसाए एदासिं बंधाणुवलंभा ।
समाधान-कषायों में प्रमादका अन्तर्भाव होता है, क्योंकि, कषायोंसे पृथक् प्रमाद पाया नहीं जाता।
देवायुके बन्धका भी कषाय ही कारण है, क्योंकि, प्रमादके हेतुभूत कषायके उदयके अभावसे अप्रमत्त होकर मन्द कषायके उदयरूपसे परिणत हुए जीवके देवायुके बन्धका विनाश पाया जाता है। निद्रा और प्रचला इन दो प्रकृतियोंके भी बन्धका कारण कषायोदय ही है, क्योंकि, अपूर्वकरणकालके प्रथम सप्तम भागमें संज्वलन कषायोंके उस कालके योग्य तीव्रोदय होने पर इन प्रकृतियोंका बन्ध पाया जाता है। देव. गति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, आहारकशरीरांगोपांग, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और तीर्थकर, इन तीस प्रकतियोंके भी बन्धका कषायोदय ही कारण है, क्योंकि, अपूर्वकरणकालके सात भागोंमेसे प्रथम छह भागोंके अन्तिम समयमें मन्दतर कषायोदयके साथ इनका बन्ध पाया जाता है। हास्य, रति, भय, और जुगुप्सा, इन चारके बन्धका अधःप्रवृत्त और अपूर्वकरणसम्बन्धी कषायोदय कारण है, क्योंकि उन्हीं दोनों परिणामोंके कालसम्बन्धी कषायोदयमें ही इन प्रकृतियोका बन्ध पाया जाता है।
चार संज्वलन कषाय और पुरुषवेद इन पांच प्रकृतियोंके बन्धका बादर कषाय कारण है, क्योंकि, सूक्ष्मकषाय गुणस्थानमें इनका बन्ध नहीं पाया जाता। पांच ज्ञाना
१ प्रतिषु 'पदमसम्मत्तमभाए' इति पाठः ।
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